ख़ूबसूरत हिजड़े की तरह होता है विज्ञापन

 ख़ूबसूरत हिजड़े की तरह होता है विज्ञापन

बरसों पहले एक ख़ूबसूरत हिजड़े का इंटरव्यू किया था, तब लगा था कि ऐसे हिजड़े विज्ञापन की तरह होते हैं। कोमल (हिजड़ा) ने खुलकर बताया था कि हमारे पेशे में नियम-क़ानून, अनुशासन और पुरानी परंपराओं का पालन करना बेहद ज़रूरी है। शादी-ब्याह, मूंडन, छठी, बच्चे की पैदाइश पर एरिया वाइस हम नेग लेने जाता हैं, दुआएं देते हैं और मनोरंजन के लिए नाचते-गाते हैं। और इस तरह हिजड़ा बिरादरी की रोटी-रोज़ी चलती हैं। किंतु कभी इस तरह कमाने का मौक़ा नहीं भी मिलता है। तब मेरे जैसे चंद ख़ूबसूरत हिजड़े पेट की ख़ातिर मजबूरीवश अपने पेशे का अनुशासन तोड़ते हैं। हम खुद को लड़की के तौर पर पेश करते हैं।कुछ बेवकूफ लोग हमें खूबसूरत लड़की समझकर हमारे ऊपर फिदा हो जाते हैं। और हम उनकी गर्लफ्रैंड बन कर अपनी आर्थिक जरुरतें पूरा कर लेते हैं। जब तक राज़ खुले हमारा काम हो चुका होता है।
आज से 16 बरस पहले जब ये इंटरव्यू किया था तब ही महसूस हुआ था कि हूबहू ख़ूबसूरत लड़की दिखने वाले हिजड़े की सिफत विज्ञापन जैसी होती है। सौ में एक- दो ही बेवकूफ लोग होते हैं जो विज्ञापन के दावों को सच या हिजड़े को युवती समझ बैठते हैं। समझदार लोग जानते-समझते हैं कि विज्ञापन सच नहीं होते, पूरी तरह सच तो क़तई नहीं।
किसी भी दौर में किसी भी विज्ञापन की विश्वसनीयता पर सवाल उठाना ही मूर्खता है। जब ये तय है कि आकर्षक लड़की का रूप धारण करने वाला ऊपर से नीचे तक हिजड़ा ही है तो उसके किसी तिल के असली-नकली होने पर बहस करना ही हास्यास्पद है।
मैगी का विज्ञापन हो या फेयर एंड लवली का, श्याम बहार, कमला पसंद, रजनीगंधा का, सिगरेट या शराब का विज्ञापन हो। दिनदहाड़े अंगेजी बोलने का एडवरटीज़मेंट हों या बिना हाईस्कूल इंटर कोर्स करने जैसा हास्यास्पद विज्ञापन कंटेंट हो। गुप्त रोगों के इलाज की ठगी का विज्ञापन हो या मसाज पार्लर का हो। शाही दवाखाने का इश्तिहार हो… या कोई और, विज्ञापन क़ाबिले भरोसा नहीं होते।
याद होगा आपको, यूपी में मुलायम सिंह सरकार पर जब गुंडा राज की तोहमते लगने लगीं। विपक्ष कानून व्यवस्था के चरमराने के आकड़ों के साथ हमलावर होने लगा तो सपा सरकार ने एक चर्चित विज्ञापन से पूरा यूपी पाट दिया था। अमर सिंह के जरिए तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के ख़ासमख़ास बने बिग बी को सरकार के क़सीदे गढ़ने के लिए मुलायम सरकार का ब्रॉड एंबेसडर बनाया गया। सैकड़ों करोड़ खर्च करके लोकप्रिय अभिनेता महानायक अमिताभ बच्चन से कहलवाया गया- ” यूपी मे है दम, क्योंकि जुर्म यहां है कम”। ख़राब क़ानून व्यवस्था को बेहतर बताने वाला ये जुमला प्रदेश भर में होल्डिंग से पट गया था। अखबारों और टीवी पर अमिताभ बच्चन हर वक्त यही कहते हुए नजर आते थे कि- यूपी मे है दम क्योंकि जुर्म यहां है कम। इत्तेफाक कि इन विज्ञापनों की बौछारों के दौरान ही यूपी में तमाम अपराधिक घटनाओं के साथ बच्चों को मारकर खाने वाला निठारी कांड भी उत्तर प्रदेश की जनता का दिल दहला गया था। यही हाल हर सरकार मे रहा है। मायावती की सरकार हो, आखिलेश की सरकार हो, योगी सरकार हो या दिल्ली की केजरीवाल सरकार हो, गंजे को कंघी बेचने वाले खर्चीले विज्ञापनों की फितरत एक जैसी होती है।

एक फूल को क्या रोना जब खेत के खेत उजड़ते रहे हों। महिला अपनी सही उम्र कभी नहीं बताती। पुरुष अपनी वास्तविक तनख्वाह सही नहीं बताता।अखबार का मालिक कभी सही प्रसार नहीं बताता। तो फिर विज्ञापन से तो ये क़तई उम्मीद मत कीजिए कि उसके दावे.. उसकी तस्वीरें सही हों। विज्ञापन की दुनिया में दाल मे काला नहीं होता बल्कि काले में दाल होती है। सेल्स,मार्केटिंग और ब्रांडिंग वाले पेशे के विज्ञापन का झूठ तो पुरानी आम परंपरा है, क़ाबिले फिक्र बात तो ये है कि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रक्षक पत्रकारों की खबरों की विश्वसनीयता दशकों से दरकती जा रही है।

वरिष्ठ पत्रकार नवेद शिकोह


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