चार सौ बीसी की कहानी चार सौ बीस रुपए में। यही इस पुस्तक की समीक्षा है।

 चार सौ बीसी की कहानी चार सौ बीस रुपए में। यही इस पुस्तक की समीक्षा है।

न्यूजक्लिक पर डॉ. कफील खान से उनकी इस किताब पर बात करते हुए वरिष्ठ पत्रकार परंजोय गुहा ठाकुरता अंत में कीमत और प्रकाशक की चर्चा करते हुए लटपटा गए। 600 रुपए कह गए। डॉ. खान ने सुधारा और बताया कि 499 रुपए है और अमैजन छूट भी दे रहा है। यह दिलचस्प संयोग है कि छूट के बाद कूरियर खर्च समेत यह किताब 420 रुपए की पड़ी। चार सौ बीसी की कहानी चार सौ बीस रुपए में। यही इस पुस्तक की समीक्षा है।

यह किताब सिर्फ समीक्षा के लिए नहीं पढ़ने और नोट करने के लिये है। इसका एक-एक शब्द, वाक्य और पैराग्राफ – हरेक पन्ना पढ़ने, जानने और याद रखने लायक है। डबल इंजन सरकार के सत्ता के नशे में मस्त हो जाने की कहानी है। अगस्त में बच्चे मरते ही हैं जैसे बयान या लाचारगी की कहानी है। अब अगस्त में बच्चे नहीं मरते? ना खबर है ना श्रेय लिया जा रहा है। उसकी कहानी है। कहने की जरूरत नहीं है कि हिन्दी में इसके खरीदारों और पाठकों की संख्या कम नहीं होगी।

लेकिन हिन्दी में प्रकाशित होगी कि नहीं यह भविष्य बतायेगा। हालांकि, यह किताब इन सब चीजों से बहुत ऊपर है। और इसे छापने के लिए अगर हिम्मत चाहिए तो पढ़ने के लिए जो निष्पक्षता चाहिए वह बात-बात पर हिन्दू हो जाने वाले कितने हिन्दी वालों में है, मैं नहीं जानता। पर यह किताब एक दस्तावेज है। नालायकी और सीनाजोरी का दस्तावेज, जिसके शिकार हर जाति धर्म के लोग हुए लेकिन बलि का बकरा धर्म विशेष का मिल गए और लोग भूल गए कि मरने वाले बच्चे उनके ही धर्म के थे। सिस्टम का कोई धर्म नहीं होता जिसकी सरेआम हत्या कर दी गई। और फिर हत्या को बलि के बकरे का दोष बताकर सामान्य अपराध बना दिया गया।

संजय कुमार सिंह

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