तथाकथित पत्रकार व फर्जी फिल्म निर्देशक से बच कर रहना

सनोज मिश्रा ..फिल्म निर्देशक…जरा बच कर रहें फाइनेंसर ?

इस फर्जी फिल्म निर्देशक से बच कर रहना। रेडक्लाइज हो चुका यह तथाकथित फिल्म निर्देशक तमाम फिल्मों में फाइनेंसरों का पैसा फंसा कर अपना उल्लू सीधा कर चुका है और विगत कुछ सालों से लगातार इस तरह की कोशिशों में है कि हिन्दू-मुसलमान के नाम पर नफरत बेचकर कुछ कमा सके। इसने अखिलेश सरकार के कार्यकाल में दिल्ली के एक बड़े “यादव” होटल व्यावसाई को फंसाया और उससे अपने एक सब्जेक्ट पर पैसा लगवाया…फिल्म थी गांधी… ओमपुरी को लेकर इसने गांधी फिल्म बनाई क्योंकी उस वक्त के माहौल में गांधी ही बिक सकती थी…फिल्म की सब्सिडी के चक्कर में यादव होटल व्यावसाई भी फंसा … सब्सिडी मिली कि नहीं ये मुझे तो पता नहीं लेकिन फिल्म में यादव का काफी पैसा फंसा दिया इसने। इसके बाद कुछ और फाइनेंसरों को फिल्म के नाम पर फंसा कर लाया और उनका भी पैसा फंसा दिया…इसकी एक भी फिल्म ने बाक्स आफिस पर पानी तक न मांगा…। लखनऊ के फैजाबाद रोड स्थित (हाईकोर्ट के सामने ) एक होटल में इसने मुझे फोन करके बुलाया। दो-तीन बार फोन करने के कारण मैं मिलने गया। वहां इसने मुझे फाइनेंसर यादव से मिलवाया और सब्सिडी में मदद करने को कहा। हालांकि, मैं मदद नहीं कर सका इसे मैं स्वीकार करता हूं। फिल्म बनने के एक साल बाद यूं ही मैंने एक दिन यादव को फोन मिलाया तो पता चला उनका पैसा फंस चुका था। यह पैसा बाद में रिकवर हुआ यह नहीं मुझे नहीं पता। सनोज मिश्रा जैसे फिल्म निर्देशकों ने दरअसल पूरी फिल्म इंडस्ट्रीज को बदनाम किया है और निर्माताओं को ठगा है। झूठ और सब्जबाग दिखा कर ऐसे बतौर निर्देशक अपना उल्लू सीधा करके निर्माताओं को चूना लगाने वाले ऐसे धंधेबाजों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जरूरत है जो न केवल इंडस्ट्री को बदनाम करते हैं बल्कि लोगों के विश्वास को ही धोखा देते हैं….खैर, उस वक्त गांधी के नाम पर फिल्म बिक सकती थी तो गांधी बनाई उसके बाद इसने काश्मीर को लेकर कोई फिल्म बनाई क्योंकि माहौल बदला तो काश्मीर सब्जेक्ट पैसा दे सकता था लेकिन ये ही न चली…इस फिल्म में किसका पैसा इसने डुबोया ये मुझे नहीं पता लेकिन अग्निहोत्री की तरह काश्मीर फाइल्स टाइप्स की फिल्म बनाकर पैसा कमाने की इसकी गोट ठीक न बैठी।
दरअसल, सनोज मिश्रा टाइप के लोगों की मुंबई में एक पूरी जमात है। ये कैफे काफी डे में बैठकर मछली फंसाने वाली वो बिरादरी है जो फिल्म के नाम पर अपने खर्चे पानी का हिसाब करके कल्टी हो जाती है।‌ अब सनोज टाइप लोग उस धारा की ओर हैं जहां वे हिंदू-मुस्लिम के नाम पर कमा सकें…..वैसे इनके कथनानुसार ये पत्रकार भी रह चुके हैं। फिलहाल, फिल्म फाइनेंसरों को ऐसे डुगडुगी डुमाडुमा टाइप निर्देशकों से बच कर रहना चाहिए… ??

पवन सिंह

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