देश के नंबर वन न्यूज चैनल आजतक से पूरे 10 साल और 6 दिन बाद विदा ले ली। 10 साल का वक्त कम नहीं होता, लेकिन ऐसा लग रहा है जैसे अभी कुछ दिन पहले ही तो आजतक में आया था। जब भी कोई नौजवान पत्रकारिता में अपना करियर बनाना चाहता है तो उसका सबसे बड़ा सपना होता है आजतक में काम करना। मैंने आजतक में दो पारी में सवा 11 साल काम किया। ये किसी सपने को जीने जैसा ही था।
आजतक का साथ भले ही 10 साल का था, लेकिन तमाम साथियों का साथ तो और भी पहले से था। हमारे चैनल हेड सुप्रिय प्रसाद Supriya Prasad, आउटपुट हेड मनीष कुमार, सईद अंसारी, अंजना, श्वेता, मुकुल मिश्रा, आरसी शुक्ला, शादाब, बजरंग झा, नीरज समेत कई साथियों से नाता तो और भी पुराना था। क्योंकि ये सभी न्यूज 24 में भी साथ थे। कमोबेश 15 बरसों का साथ था ये। आजतक में जो अपनापन और सम्मान मिला, वो बहुत कम लोगों को नसीब होता है। इस मामले में मैं खुद को सौभाग्यशाली मानता हूं।
प्रसंगवश एक बात आज और बता हूं, जब मैं प्रिंट मीडिया में था तो अक्सर आजतक चैनल देखा करता था। श्वेता सिंह की एंकरिंग मुझे अच्छी लगती थी या यूं कह लें कि श्वेता का मैं फैन था। तब मैंने सोचा नहीं था कि कभी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में आऊंगा। संयोग देखिए न सिर्फ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में आया, आजतक में भी आया और मेरे दर्जनों शोज और प्रोग्राम्स की एंकरिंग श्वेता ने की। यही नहीं श्वेता ने कई बार दफ्तर में सार्वजनिक रूप से मेरी स्क्रिप्टिंग की प्रशंसा की।
आजतक छोड़ने का फैसला आसान नहीं था।इस्तीफा मंजूर करवाना और भी कठिन था। 12 दिन तो उसमें लग गए। आखिरकार महीने भर का नोटिस पीरियड भी पूरा हो गया। आजतक में साथियों से विदा ले रहा था तो कुछ भावुक पल भी आए। सुप्रिय के केबिन में दो मिनट और ठहरता तो फिर बरसात ही होनी थी। सुप्रिय आईआईएमसी में सहपाठी रहे हैं तो यहां मेरे बॉस भी थे। दोनों जिम्मेदारियां उन्होंने अच्छी तरह निभाईं। वैसे भी सुप्रिय प्रसाद जैसा सहृदय इंसान आपको कहीं मिलेगा नहीं। कोई इगो नहीं, कोई दिखावा नहीं। सुप्रिय के असाधारण व्यक्तित्व की सबसे बड़ी विशेषता है कि वे बेहद सामान्य तरीके से रहते हैं।
खैर..ऑफिस से बाहर निकला तो ऑफिस ब्वॉय बिजेंदर मिला, पूछा- सर जा रहे हैं आप। मैंने कहा- हां। बोला- आपको याद है न कि वीडियोकॉन टॉवर में भी मैं था। आपकी पानी की बोतल मैं भरा करता था। मैंने कहा कि अगर तुमको भूलूंगा तो किसी को भी भूल सकता हूं। बाहर ही हमारे गार्ड अजय जी मिल गए। साठ के आसपास की उम्र होगी, अपनी ड्यूटी ईमानदारी के साथ निभाते हैं तो कविताएं भी लिखते हैं। नई कविता भी उन्होंने सुनाई।
दफ्तर से निकलने का पल भारी था। कार के शीशे के साथ चिपका आजतक का स्टिकर निकालना था। जिद्दी बच्चे की तरह अटक गया था, कमबख्त बाहर आने के लिए तैयार नहीं था। निकला तो पूरा निकला। मेन गेट पर आई कार्ड जमा किया और औपचारिक रूप से आजतक से विदाई हो गई।
पल भर में इंडिया टुडे मीडियाप्लेक्स की इमारत बेगानी हो गई। जिस आलीशान इमारत के गेट पर गाड़ी पहुंचते ही नमस्कार करते हुए गार्ड गेट खोल देते थे, बेखटके मेरी गाड़ी बेसमेंट में दाखिल होती थी। अब जाऊंगा तो वो गाड़ी कहीं बाहर लगवाएंगे। जिस सेकेंड फ्लोर पर बरसों इतराता रहा, वहां पहुंचने के लिए विजिटिंग पास बनवाना होगा। यही कारपोरेट की संस्कृति है। आजतक के साथियों को छोड़े संदेश में मैंने यही लिखा कि सिर्फ संस्थान से दूर जा रहा हूं, दिलों से दूर नहीं हूं। न मैं बदलूंगा और न ही मेरा फोन नंबर।
आजतक ही नहीं छूटा है, फिल्म सिटी भी छूट रही है। काम करने की जगह बदलने वाली है। एक और बहुमंजिली इमारत मेरा इंतजार कर रही है। कुछ दिनों में वहां मेरी गाड़ी पहुंचते ही गार्ड गेट खोल देंगे। इमारत के बेसमेंट में बेखटके गाड़ी दाखिल हो जाएगी। एक नई जगह, एक नई जिम्मेदारी। अब तक के करियर में हर जगह हर पारी बेहद शानदार रही। ये पारी भी बढ़िया हो, इसके लिए आप सभी मित्रों की दुआओं की दरकार है।
(आजतक कार्यालय में पिछले दो दिनों में खिंचवाई गईं कुछ तस्वीरें।)
विकास मिश्रा वरिष्ठ पत्रकार
var /*674867468*/