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इंदौर प्रेस क्लब का मनाया गया साठवां स्थापना दिवस

 इंदौर प्रेस क्लब का मनाया गया साठवां स्थापना दिवस

कौस्तुभ !
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इंदौर प्रेस क्लब का कल साठवां स्थापना दिवस था। क्लब ने इस अवसर पर जाल सभागार में एक परिसंवाद और सम्मान समारोह आयोजित किया। निमंत्रण पत्र में लिखा था इंदौर प्रेस क्लब का कौस्तुभ जयंती वर्ष ! क्या आप कौस्तुभ का अर्थ जानते हैं ?

कल ही देश के मूर्धन्य पत्रकार और महान संपादक स्वर्गीय राजेन्द्र माथुर की पुण्यतिथि भी थी। वे इंदौर प्रेस क्लब के संस्थापकों में से एक थे। गोया कल प्रेस क्लब की कौस्तुभ जयंती वर्ष का मौका था तो स्वर्गीय माथुर की पुण्यतिथि भी। जयंती शब्द का इस्तेमाल अकसर सुखद प्रसंग में किया जाता है और कोई दिवंगत हुआ हो तो पुण्यतिथि। यों साठवें वर्ष को अमूमन हीरक जयंती कहा जाता है। हीरक शब्द में हीरे का भाव निहित है। कौस्तुभ एक मणि का नाम है, जो देवताओं और असुरों द्वारा किये गए समुद्र मंथन से निकली थी और जिसे भगवान विष्णु धारण करते हैं। कौस्तुभ का अर्थ एक तांत्रिक मुद्रा भी होता है और एक तेल भी। मणि भी दो तरह की होती है। एक जैविक यानी जैसे नागमणि और गजमणि आदि। दूसरी होती है प्राकृतिक यानी जैसे पारसमणि, मेघमणि, कौस्तुभ मणि आदि। कहते हैं कि जहां कौस्तुभ मणि होती है वहां कभी कैसी भी दैवीय आपदा नहीं आती ! हालांकि पता नहीं किस शब्द तांत्रिक ने प्रेस क्लब के निमंत्रण पत्र में हीरक के बजाय कौस्तुभ जयंती रच मारा था अलबत्ता किसी मित्र को उसे समझने में मूर्छा का सामना न करना पड़े, इसलिए उसके खुलासे जैसा यह ताबीज मुझे आपकी जानिब सरकाना जरूरी जान पड़ा। जो हो।

परिसंवाद का विषय था, “सोशल मीडिया के दौर में प्रिंट मीडिया कैसे बचाये अपना वजूद ?” इस पर बोलने वाली देश की और पत्रकार जगत की तीन हस्तियां थीं। जी हां, एक थे देश की सबसे बड़ी पंचायत कही जाने वाली राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश नारायण सिंह। आप प्रखर पत्रकार होने के साथ साथ सांसद हैं और जब चंद्रशेखर देश के प्रधानमंत्री थे तो उनके सलाहकारों में शुमार होते थे। ये बिहार में चन्द्रशेखर के जिले बलिया के और जयप्रकाश नारायण के गांव से आते हैं। दूसरे थे पद्मश्री आलोक मेहता। ये मूलतः उज्जैन के हैं, नामवर पत्रकार हैं और राजेंद्र माथुर के साथ काम कर चुके हैं। तीसरे थे हिमांशु द्विवेदी। यह अखबार हरिभूमि के प्रधान संपादक हैं और देश के सबसे युवा प्रखर वक्ता माने गए थे। विषय प्रवर्तन के बहाने सबसे पहले यही बोले। मंच पर इन तीनों के अलावा पूर्व राज्यपाल वीएस कोकजे, देवी अहिल्या विश्वविद्यालय की कुलपति रेणु जैन, पूर्व महाधिवक्ता आनंदमोहन माथुर और सांसद शंकर लालवानी भी विराजित थे। सभागार सुनने वालों से खचाखच था और गेदरिंग देखिए कि पूर्व सांसद कल्याण जैन, क्रिकेट कमेंटेटर पद्मश्री सुशील दोषी, पद्मश्री फोटोग्राफर भालू मोंढे, इंदौर महाविद्यालय के प्रबंध संचालक गिरधर नागर, नगर निगम के पूर्व जनसंपर्क अधिकारी निर्मल शर्मा, जनहितैषी मुद्दों को लेकर अफसरों की नाक में दम करने वाले किशोर कोडवानी, साहित्यकार हरेराम बाजपेयी व पूर्व शहर कांग्रेस अध्यक्ष और दबंग नेता पण्डित कृपाशंकर शुक्ला सहित विलग-विलग क्षेत्रों की नाना मूर्तियां उनमें शुमार थीं। हां, पत्रकार तो बहुत सारे थे ही।

हिमांशु द्विवेदी ने सचमुच अपनी बात प्रखरता से रखी। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया का असर यह है कि हमारे खुद के बच्चे ही अखबार नहीं पढ़ रहे। कांटा बात उन्होंने यह कही कि अब पाठक मुफ्त की बाल्टी के लालच में अपना अखबार ही बदल देता है ! जमा उसे पन्द्रह-बीस रुपये लागत का अखबार तीन रुपये में चाहिए और ऊपर से उसे अखबार से अपेक्षा भी ऊंची और ईमानदारी की ! कैसे मुमकिन है यह ? यदि पाठक पूरी कीमत देकर अखबार खरीदे तो बहुत संभव है कि फिर अखबार मालिक सरकार और व्यापारिक दबावों के सामने झुकने से या उनसे समझौते करने से मना कर दें। सो देखा जाए तो सरकारें और व्यापारी दबाव और समझौते के बहाने अखबार मालिक नहीं, बल्कि पाठकों की ऊंची और ईमानदारी की अपेक्षा का सौदा कर लेते हैं। यह बात सबको साफ समझनी होगी। उन्होंने अपने वक्तव्य में वसीम बरेलवी का एक शेर और एक छोटी कहानी भी हाजिर की। उनके बाद बोलने आये पद्मश्री आलोक मेहता। इंदौर प्रेस क्लब के अध्यक्ष अरविंद तिवारी ने उनके स्वागत में कहा था कि आलोक मेहता ने इंदौर से पत्रकारिता की शुरुआत की थी सो वो तो हमारे अपने हैं और उन पर हमारा हक है। मेहता माइक पर आए तो उन्होंने उस हक का ऐसा सिला दिया कि खूब बोले, लेकिन उसमें काम की बात ढूंढना ऐसा ही था जैसे भूसे के ढेर में सुई। उनकी बात विषय तो ठीक, उसमें सलीके और सिलसिले के भी खण्डवा तक पते न थे। कानों और धीरज की तगड़ी परीक्षा ली उन्होंने।

बहरहाल अच्छा, बल्कि बहुत अच्छा यह रहा कि हरिवंश ने उसकी कमाल भरपाई की। यह बिहारी मूर्ति बहुत अध्यययनशील है और बोलने के लिए बहुत तैयारी के साथ पधारी थीं। उनकी धर्मपत्नी भी सामने श्रोताओं में विराजित थीं। असल में कल उन्होंने जो कहा वो इंदौर नहीं, बल्कि पूरे देश और दुनिया को गंभीरता से सुनने लायक है। खासकर नयी पीढ़ी को तो उसे हर सूरत सुनना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत नहीं, पूरी दुनिया में सोशल मीडिया चिंता का सबब हो गया है। यह ऐसा माध्यम है कि लोग सुबह कोरोना के विशेषज्ञ हो जाते हैं, दोपहर में रूस-यूक्रेन युध्द के और शाम को महंगाई के ! उन्होंने कहा कि अराजक आजादी बहुत खतरनाक होती है। अब तकनीक ने बहुत कुछ बदल दिया है और यह बदलाव लगातार जारी है। पहले दुनिया विचारों से चलती थी। महात्मा गांधी के समय इतने तकनीकी संसाधन न थे, लेकिन देश उनके पीछे चला और अंग्रेजों को देश छोड़कर जाना पड़ा। एक समय काशी, प्रयाग, पुणे और इंदौर सांस्कृतिक स्थल होते थे, लेकिन अब सिलिकॉन वैली और तरह-तरह के हब उभर आए हैं।

उन्होंने कहा कि विश्वसनीयता और विजन स्वर्गीय राजेन्द्र माथुर की आला विशेषता थी। अपने समय की चुनौतियों को बूझना और उनका सटीक विश्लेषण करते हुए उनके समाधान की पड़ताल के साथ समाज को दिशा दिखाने का काम वो अपने ओजस्वी लेखन से करते थे। जब समाज के भविष्य को लेकर आप कोई विचार पेश करते हैं तो समाज में उस पर विमर्श होता ही है। समझने वाली बात यह है कि यह तकनीकी क्रांति का युग है। आज स्टीव जॉब्स का आईपैड घर-घर पहुंच गया है, लेकिन स्टीव जॉब्स अपनी संतानों को ज्यादा टेक्नालॉजी एक्सेस नहीं करने देते, बल्कि उन्हें वैल्यूज और संस्कारों का पाठ ज्यादा पढ़ाते हैं। अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की बात हो रही है। डिजाइनर बच्चे पैदा करने की बात हो रही है और मनचीते मनुष्य बनाने का विचार भी उपजा है। इसे देखते हुए कई जानकारों का कहना है कि आईन्दा यह तकनीक मानव जाति पर बहुत बड़े खतरे के रूप में सामने आएगी। जरूरत यही है कि इन खतरों को घर-घर जाकर बताया जाए। सबसे खास बात यह है कि चूंकि पूरी दुनिया एक ग्लोबल विलेज हो गयी है तो जाहिर सी बात है कि पूरी दुनिया की यानी हम सबकी नियति भी एक हो गयी है। दरअसल हरिवंश और भी बहुत कुछ बोलना चाहते थे, लेकिन उनके पहले पद्मश्री आलोक मेहता बोलकर खूब सारे समय का सत्यानाश कर चुके थे। लिहाजा बमुश्किल आधा घण्टे में ही उन्होंने अपना उम्दा वक्तव्य खत्म कर दिया। कार्यक्रम का संचालन संजय पटेल कर रहे थे और हरिवंश ने मंच से उनके संचालन को सराहा। आभार प्रेस क्लब के महासचिव हेमंत शर्मा ने जताया।

समारोह में ऐसे पत्रकारों का सम्मान किया गया, जो अपने पेशे में पचास बरस पूरे कर चुके हैं। पचास बरस कोई छोटी अवधि नहीं है। हमें ऐसे महानुभावों को जानना चाहिए। ये महानुभाव हैं, सर्वश्री अभय छजलानी, विमल झांझरी, कृष्ण कुमार अष्ठाना, उमेश रेखे, महेश जोशी, सुरेश ताम्रकर, श्रीकृष्ण बेड़ेकर, बृजभूषण चतुर्वेदी, शशिकांत शुक्ल, बहादुरसिंह गहलोत, विद्यानन्द बाकरे, कृष्णचंद दुबे, चंद्र प्रकाश गुप्ता, सतीश जोशी, चंदू जैन, गजानन्द वर्मा, दिलीप गुप्ते, विक्रम जैन और मदनलाल बम। अंत में कार्यक्रम के बाद वरिष्ठ पत्रकार साथी हर्षवर्धन के आग्रह पर सभागार के बाहर एक चित्र लिया गया। ऊपर लगे इस चित्र में बाएं से वरिष्ठ पत्रकार साथी प्रदीप कुमार मिश्रा हैं, फिर यह अकिंचन है, हर्षवर्धन हैं, देश के बड़े कार्टूनिस्ट इस्माईल लहरी हैं, कीर्ति राणा हैं और हैं राजेन्द्र कोपरगांवकर। लहरी भाई की इच्छा है कि इंदौर में एक बार देश के तमाम नामचीन कार्टूनिस्ट भी जुटें ! दुआ करता हूँ कि जल्द ऐसा हो।

चंद्रशेखर शर्मा वरिष्ठ पत्रकार

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