
DD News से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार प्रखर श्रीवास्तव और अशोक श्रीवास्तव एक बार फिर चर्चा में हैं, लेकिन इस बार वजह पत्रकारिता नहीं बल्कि उनके खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर है। दावा किया गया है कि कांग्रेस पार्टी ने इन दोनों पत्रकारों के खिलाफ कर्नाटक में एक आपराधिक मामला दर्ज कराया है, जिसे पत्रकारों ने राजनीतिक प्रतिशोध करार दिया है।
FIR के पीछे ‘राजनीतिक मंशा’?
प्रखर श्रीवास्तव ने सोशल मीडिया पर एक लंबी पोस्ट के जरिए बताया कि यह FIR कथित तौर पर कांग्रेस की आलोचनात्मक रिपोर्टिंग के चलते दर्ज की गई। उनका आरोप है कि यह एक “सोची-समझी रणनीति” है, जो पत्रकारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने की कोशिश करती है।
प्रखर ने बताया कि कर्नाटक पुलिस की एक टीम विशेष विमान से दिल्ली आई थी, ताकि उन्हें गिरफ्तार कर बेंगलुरु ले जाया जा सके। लेकिन दोनों पत्रकारों ने कर्नाटक हाईकोर्ट में तुरंत याचिका दायर कर राहत की मांग की। कोर्ट ने प्राथमिक सुनवाई में मामला स्थगित करते हुए स्टे ऑर्डर जारी कर दिया।
“हम डरने वाले नहीं हैं” — प्रखर श्रीवास्तव
प्रखर ने अपने बयान में दो टूक शब्दों में कहा:
“हम न झुकेंगे, न टूटेंगे। हम तथ्यों, तर्कों और सबूतों के साथ जवाब देते रहेंगे और पूरा सच बोलते रहेंगे।”
उन्होंने सीधे तौर पर कांग्रेस और उसके “दिल्ली में बैठे आकाओं” पर हमला बोलते हुए कहा कि यह कदम एक तरह की तानाशाही और फासीवादी मानसिकता का परिचायक है, जिसे देश की जनता स्वीकार नहीं करेगी।
‘दिनकर’ की पंक्तियों से दिया संदेश
अपने विरोध को और अधिक तीव्र बनाते हुए प्रखर ने राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की कविता उद्धृत की, जो उनके जज़्बे को दर्शाती है:
“अब जो सिर पर आ पड़े, नहीं डरना है,
जनमे हैं तो दो बार नहीं मरना है।
कुत्सित कलंक का बोध नहीं छोड़ेंगे,
हम बिना लिये प्रतिशोध नहीं छोड़ेंगे।”
मीडिया स्वतंत्रता पर फिर बहस शुरू
इस घटनाक्रम ने एक बार फिर मीडिया की स्वतंत्रता और पत्रकारों की सुरक्षा को केंद्र में ला दिया है। आलोचकों का कहना है कि यदि किसी रिपोर्ट से असहमति है तो उसका समाधान न्यायिक प्रक्रिया और प्रेस काउंसिल जैसे मंचों के जरिए होना चाहिए, न कि एफआईआर और गिरफ्तारी से।
वहीं समर्थकों का कहना है कि भ्रामक या पक्षपाती रिपोर्टिंग के खिलाफ कार्रवाई भी लोकतंत्र का हिस्सा है।
अब क्या होगा?
कर्नाटक हाईकोर्ट से मिली अंतरिम राहत के बाद अब सबकी नजरें अगली सुनवाई पर हैं। क्या कांग्रेस इस मामले को और आगे बढ़ाएगी? क्या पत्रकारों को स्थायी राहत मिलेगी? और सबसे अहम—क्या यह मामला देशभर में मीडिया बनाम सत्ता की नई बहस की भूमिका तैयार कर रहा है?