
छत्तीसगढ़ से एक शर्मनाक खबर आई जनसंपर्क विभाग में पदस्थ संयुक्त संचालक श्री संजीव तिवारी पर कुछ तथाकथित पत्रकारों ने हमला कर दिया।
हमला केवल व्यक्ति पर नहीं था, यह पत्रकारिता की मर्यादा, साख और सच्चाई पर भी वार था।
विज्ञापन मांगने का यह नया तरीका शायद अब “पत्रकारिता” कहलाने लगा है। जो कभी कलम के बल पर व्यवस्था से सवाल करता था, वह अब हाथ के बल पर विभाग से विज्ञापन मांग रहा है। यह सिर्फ अनुशासनहीनता नहीं यह पेशे की आत्मा पर धब्बा है। https://www.facebook.com/share/v/168uHUbgMJ/
जनसंपर्क विभाग सदैव संवाद, सहयोग और पारदर्शिता का माध्यम रहा है। यह विभाग पत्रकारों के हित में काम करता है लेकिन हित का अर्थ यह नहीं कि अधिकारी को धमकाओ, और मर्यादा की हर सीमा को तोड़कर “मीडिया की आज़ादी” का झंडा उठाओ।
पत्रकारिता कभी गुंडागर्दी का आवरण नहीं रही।
पत्रकार का धर्म था सवाल पूछना, सच उजागर करना।
पर अब कुछ लोगों ने इसे “विज्ञापन वसूली” का व्यवसाय बना दिया है। ये वही लोग हैं जो कलम को हथियार और प्रेस कार्ड को लाइसेंस समझ बैठे हैं।
अगर व्यवस्था पर प्रहार करना ही पत्रकारिता है,तो पहले अपने भीतर की व्यवस्था देखनी होगी। क्योंकि जो अनुशासन अपने भीतर नहीं रखता,वह समाज में व्यवस्था नहीं ला सकता।
जो कुछ हुआ, वह दुर्भाग्यपूर्ण है पर उससे भी बड़ा दुर्भाग्य यह है कि ऐसे लोगों को अब भी “पत्रकार” कहा जा रहा है। समय आ गया है कि पत्रकारिता और गुंडागर्दी के बीच की रेखा फिर से खींची जाए।
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नोट – अगर आपके फोन में लिंक ना खुले तो इस नंबर 9411111862 को सेव कर ले लिंक खुल जाएगा इसलिए बताया जा रहा है कि कुछ पत्रकार भाईयों की शिकायत है कि लिंक नहीं खुल रहा है