
“पहनोगी भी और छुपाओगी भी, आखिर क्यों?”—वायरल वीडियो ने सोशल मीडिया पर फिर छेड़ी ‘पहनावे बनाम सोच’ की बहस
नई दिल्ली। सोशल मीडिया पर इन दिनों एक वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है जिसमें एक युवती सार्वजनिक जगह पर मॉडर्न ड्रेस पहने नजर आ रही है, लेकिन वह खुद ही अपने कपड़ों को बार-बार हाथों से ढंकने की कोशिश कर रही है। इस वीडियो पर जहां कुछ लोग महिला की हिचकिचाहट और आत्मसंकोच को लेकर सहानुभूति जता रहे हैं, वहीं कई यूजर्स ने यह सवाल उठाया है कि जब पहनावे को लेकर इतना असहज महसूस होता है तो ऐसे कपड़े पहनने की जरूरत ही क्या है?
वीडियो के साथ वायरल हो रही एक टिप्पणी में लिखा गया है:
“स्टाइल या अश्लीलता”… खुशी मुखर्जी की इस वीडियो पर राय दें#khushimukherjee | Khushi Mukherjee Model Dress pic.twitter.com/FQcVj1qBf4
— News24 (@news24tvchannel) June 28, 2025
“पहनोगी भी और छुपाओगी भी, आखिर क्यों? जब इतना सब करना ही है तो फिर ऐसे कपड़े पहनते ही क्यों हो? जिन लोगों में टैलेंट नहीं होता, वही लोग इस तरह की हरकत से लोगों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करना चाहते हैं।”
‘नंगेपन पर क्यों सब चुप? सरकार जवाब दे…’
◆ एक्ट्रेस खुशी मुखर्जी पर भड़कीं फलक नाज, कपड़ों पर उठाए सवाल #khushimukherjee #FalakNaaz | Khushi Mukherjee pic.twitter.com/vKi5JWfHoM
— News24 (@news24tvchannel) June 28, 2025
सोशल मीडिया पर बहस गर्म
यह बयान जैसे ही वायरल हुआ, इंटरनेट दो हिस्सों में बंट गया।
-
एक वर्ग ने इसे महिलाओं की स्वतंत्रता पर हमला बताते हुए “विक्टिम ब्लेमिंग” कहा।
-
वहीं कुछ लोगों ने इसे संस्कृति और शालीनता की रक्षा के नाम पर सही ठहराया।
फेमिनिस्ट एक्टिविस्ट अनुजा जैन कहती हैं,
“किसी के पहनावे को जज करना या उनकी हिचकिचाहट को ट्रोल करना, सीधे तौर पर महिला की आत्मछवि और सामाजिक स्वतंत्रता पर चोट है।”
दूसरी ओर, संस्कृति की दुहाई देने वाले कुछ यूजर्स का तर्क है कि
“ड्रेसिंग सेंस के नाम पर अशालीनता को बढ़ावा देना समाज में भ्रम और असहजता को जन्म देता है।”
सोच में बदलाव या समाज का दोहरापन?
इस वीडियो ने एक बार फिर भारतीय समाज के उस द्वंद्व को उजागर कर दिया है, जिसमें “महिलाओं को मॉडर्न दिखना है पर ‘मर्यादा’ में भी रहना है” जैसी अपेक्षाएं उन पर थोपी जाती हैं। जब महिला अपने पहनावे को लेकर आत्मविश्वासी नहीं होती, तो उसे ट्रोल किया जाता है। और अगर वह कॉन्फिडेंट होकर वही पहनती है, तो उसे “बेशर्म” कहा जाता है।
वायरल संस्कृति में नैतिकता की गिरावट?
वायरल वीडियो पर टिप्पणी करने वाले अक्सर न तो महिला की मन:स्थिति जानते हैं, न ही उनकी परिस्थितियाँ। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या सोशल मीडिया पर “मॉरल पोलिसिंग” अब सार्वजनिक न्याय का नया मंच बन गया है?
मनोविज्ञान विशेषज्ञ डॉ. सीमा द्विवेदी बताती हैं:
“कई बार महिलाएं समाज के दबाव में मॉडर्न कपड़े पहनती हैं लेकिन अंदर से सहज नहीं होतीं। उन्हें जज करने की बजाय हमें उनके आत्मविश्वास को समझने की जरूरत है।”
पहनावा है, पसंद का मामला—not a public trial
महिलाओं के पहनावे को लेकर हर बार उठने वाली बहस यह साबित करती है कि समाज आज भी स्त्री की स्वतंत्रता को नियंत्रित करने की मानसिकता से बाहर नहीं निकल पाया है। यह बहस कपड़ों की नहीं, सोच की है। सवाल सिर्फ इतना है—क्या हम वाकई आजाद सोच रखते हैं या सिर्फ दिखावे की आज़ादी?
आपकी कोई भी बात, देश में पत्रकारों से सम्बंधित खबर, सूचनाएं, किसी भी खबर पर अपना पक्ष, अगर कोई लीगल नोटिस है मेल के जरिए भेजे bhadas2medias@gmail.com या whatsapp पर मैसेज करे हमारा no है 9411111862