दिवाली पर संत बाबा बने पत्रकारों के “अनदाता”, गिफ्ट की आड़ में मस्त उगाही! एक बाबा पिलाता है सिर्फ मट्ठा
दिवाली का त्योहार रोशनी और खुशियों का पर्व माना जाता है, लेकिन इस बार धार्मिक नगरी ऋषिकेश और हरिद्वार में दिवाली के रंग कुछ और ही नजर आए। यहां के कई आश्रमों, मठों और संतों के ठिकानों पर इस बार पत्रकारों की खूब चहल-पहल रही — वजह थी “गिफ्ट”।
सूत्रों के अनुसार, दिवाली के बहाने कई पत्रकार इन दिनों संतों और बाबाओं के यहाँ पहुँचकर “दिवाली मिलन” के नाम पर गिफ्ट लेने की होड़ में हैं। कोई कहता है “बाबा जी का आशीर्वाद लेने आए हैं”, तो कोई हाथ में झोला लेकर “कवरेज” के बहाने पहुंच जाता है। पर अंदर की कहानी कुछ और ही है।
गिफ्ट के नाम पर कहीं टूथपेस्ट का डिब्बा, तो कहीं सेहत बनाने वाला च्यवनप्राश, ड्राई फ्रूट्स, साबुन, अगरबत्ती, क्रीम, और कुछ जगहों पर तो लिफाफों की भी खनक सुनाई देती है। एक स्थानीय संत ने हंसते हुए कहा, “अब तो पत्रकार लोग ही दिवाली से पहले पूछते हैं – बाबा जी, इस बार क्या मिलेगा?”
कुछ बाबाओं के लिए यह मौक़ा बन गया है अपनी “पब्लिक इमेज” सुधारने का। मीडिया में खबरें छपवाने और कवरेज दिलवाने के नाम पर “गिफ्ट पैक” बाँटे जा रहे हैं। एक वरिष्ठ नागरिक ने व्यंग्य में कहा, “यहाँ तो संत बाबा नहीं, पत्रकार ही असली साधु बन गए हैं — सबका कल्याण करवा रहे हैं, वो भी गिफ्ट से!”
हालांकि, हर जगह तस्वीर ऐसी नहीं है। एक अनशनकारी बाबा — जो वर्षों से गंगा की सफाई को लेकर तपस्या कर रहे हैं — के यहाँ इस बार कोई पत्रकार नहीं पहुंचा। वजह साफ है: वहां न तो गिफ्ट मिलता है, न लिफाफा। वहाँ पत्रकारों के लिए बस एक गिलास मट्ठा ही उपलब्ध है। और शायद यही कारण है कि दिवाली पर वहाँ सन्नाटा पसरा रहा।
स्थानीय पत्रकारिता जगत में इस “गिफ्ट कल्चर” पर चर्चा जोरों पर है। कुछ ईमानदार पत्रकार इसे पेशे की गरिमा पर धब्बा बता रहे हैं। उनका कहना है कि “पत्रकारिता समाज का आईना है, लेकिन अगर आईना खुद ही गिफ्ट से चमकाया जाएगा, तो सच्चाई कैसे दिखेगी?”
दिवाली के इस मौसम में जब हर घर में रोशनी है, तब पत्रकारिता के इस अंधेरे को देखना भी जरूरी है — क्योंकि जहां खबर बिकने लगे, वहां सच बुझ जाता है।
संपादक – संजय कश्यप bhadas2media.com
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