प्रत्याशियों ने बनाई
“एंटी वसूली पत्रकार टास्कफोर्स”
# किसान छुट्टा जानवरों से और प्रत्याशी फर्जी मीडियाकर्मियों से परेशान !
सर्वों के इस मौसम में एक सर्वें ये भी आया है कि इस वक्त दो तरह के लोग दो तरह के प्राणियों से बेहद परेशान हैं। किसान आवारा पशुओं से और चुनावी प्रत्याशी कथित मीडियाकर्मियों/पत्रकारों से परेशान हैं। एक उम्मीदवार का कहना हैं कि दस-बीस या सौ पचास हो तो संभाल लें, पर झुंड में निकले ऐसे लोगों कि इतनी बड़ी तादाद है कि ये सब वोट दे दें तो विधानसभा क्या लोकसभा चुनाव जीत जाएं। लेकिन ये वोट देने नहीं धन लेने आते हैं।
ये कौन हैं, कहां से आ रहे हैं, किस मीडिया ग्रुप से इनका ताल्लुक है, ये इंटरव्यू/बाइट खबरे कहा छापते हैं या दिखाते हैं ? इनके पत्र- पत्रिकाएं क्या पाताल के किसी स्टाल या किसी हाकर से प्राप्त होती हैं!
प्रत्याशी आगे कहता है कि यदि ये सोशल मीडिया/यूट्यूब/पोर्टल पर खबर चलाते हैं या किसी चिथड़े में खबर छापने का दावा करते हैं तो हम इनसे क्यों अपने सैकड़ों कार्यकर्ताओं/समर्थकों और घर-परिवार के लोगों के जरिए ही अपनी खबरें खुद क्यों न चलवा दें!
किसानों के खून-पसीने से तैयार की गई फसल को चरने आए आवारा/छुट्टा जानवरों की तरह ऐसे कथित पत्रकारों की हजारों की तादाद निकल घूम रही है। सैकड़ों प्रत्याशियों के घरों और चुनाव कार्यालयों में ये घुसे आ रहे हैं। इनका मुख्य उद्देश्य पैसा मांगना है। चाय, पानी, समौसा, बिस्कुट, मिठाई, दालमोट मिल जाए तो ये उसपर टूट पड़ते हैं। भोजन मिल जाए तो बल्ले-बल्ले।
ये खुद को पत्रकार बताते है। कहां से हैं ! इस बात को टाल कर सिर्फ पत्रकार होने का इंट्रोडक्शन देंते हैं, इंटरव्यू या बाइट लेने की बात करेंगे। इनमें से कुछ के हाथ में आईडी होगी। बहुत पूछने पर झमझम टाइम्स .. जैसे नाम के किसी अखबार या पत्रिका का नाम बताएंगे। या फिर यूट्यूब चैनल से होने की बात करेंगे।
अंत में ये अपने मुख्य उद्देश्य पर आकर पैसा मांगेंगे। या फिर विज्ञापन के नाम पर पैसा मांगेगे। और कहेंगे कि हम आपकी ख़बरों, इंटरव्यू/बाइट या विज्ञापन के माध्यम से आपका खूब प्रचार करेंगे, जो हो सके वो पैकेज कर दीजिए। प्रत्याशी या उनका काम देखने वाले पैसे की डिमांड सुनकर ऐसे कथित फट्टरों को या तो भगा देते हैं और या फिर हजार-पांच सो देकर विदा करते हैं। इंटरव्यू के बहाने प्रचार का पैकेज तय करने आए कुछ भाई लोगों को पैकेज नहीं मिलता तो ये दो-पचास लेकर ही संतोष कर लेते हैं।
पत्रकार बताकर पैसा मांगने वाले ऐसे गैंग में कुछ दबंग और बड़बोले भी होते हैं। जो पत्रकार होने का रोब झाड़ते हैं। ऐसे फट्टरो़ को राइट टाइम करके भगाने के लिए कुछ प्रत्याशियों ने “एंटी वसूली पत्रकार टास्कफोर्स ” बनाए हैं। इसमें दबंग कार्यकर्ता और समर्थकों को शामिल किया गया है।
– नवेद शिकोह
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