
राजस्थान में सरकारी टेंडर घोटाला? ANI पर ‘प्रॉक्सी बिडिंग’ के गंभीर आरोप, पारदर्शिता पर उठे सवाल
जयपुर | 27 मई 2025
राजस्थान सरकार द्वारा वर्ष 2023 में समाचार एजेंसी ANI को दिए गए एक बड़े सरकारी ठेके को लेकर अब गंभीर आरोप सामने आ रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक, इस ठेके की निविदा प्रक्रिया में ‘न्यूनतम तीन बिडर्स’ की अनिवार्यता को पूरा करने के लिए ANI समूह से जुड़ी तीन मुखौटा कंपनियों ने हिस्सा लिया — जिससे इस टेंडर की निष्पक्षता पर गहरे सवाल खड़े हो गए हैं।
तीन कंपनियाँ, एक ही कहानी?
सूत्रों द्वारा प्राप्त दस्तावेज़ों के अनुसार, जिन तीन कंपनियों ने निविदा में हिस्सा लिया, उनके पते, निदेशक, और यहाँ तक कि दस्तावेज़ों की टाइपिंग शैली भी लगभग समान थी। मीडिया विश्लेषकों ने इस प्रक्रिया को ‘प्रॉक्सी बिडिंग’ बताया है, जिसमें एक ही संस्थान अपने प्रभाव से फर्जी प्रतिस्पर्धा का माहौल बनाता है।
इस प्रकार की ‘कृत्रिम प्रतिस्पर्धा’ सरकार की टेंडर नीति और लोक वित्तीय प्रबंधन नियमों का उल्लंघन मानी जाती है। यदि यह आरोप साबित होते हैं, तो यह मामला भारतीय अनुबंध अधिनियम, भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम, और कंपनी कानून के तहत एक दंडनीय अपराध बन सकता है।
राजनीतिक तूफ़ान: BJP-ANI गठजोड़ पर विपक्ष के सवाल
जैसे ही यह खुलासा सार्वजनिक हुआ, विपक्षी दलों ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी। कई नेताओं ने ANI पर भारतीय जनता पार्टी (BJP) के साथ गुप्त सांठगांठ का आरोप लगाया है। एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “यह सिर्फ टेंडर नहीं, मीडिया की स्वतंत्रता को गिरवी रखने की कोशिश है।”
हालाँकि, इस मामले में अब तक न तो ANI और न ही BJP की तरफ से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने आई है, जिससे संदेह और भी गहराता जा रहा है।
सोशल मीडिया पर उबाल
सोशल मीडिया पर भी इस मुद्दे को लेकर बहस तेज हो गई है। कई यूज़र्स ने इसे “सरकारी तंत्र का दुरुपयोग” और “लोकतंत्र की आत्मा पर हमला” बताया है। ट्विटर और इंस्टाग्राम पर #ANIscam और #TenderFraud ट्रेंड कर रहे हैं।
जांच होगी या मामला दबेगा?
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इस प्रकरण की निष्पक्ष जांच होती है और दोष साबित होते हैं, तो ANI को मिले सरकारी ठेके को रद्द किया जा सकता है, साथ ही संबंधित अधिकारियों और कंपनियों पर कानूनी कार्रवाई भी संभव है।
मगर इससे बड़ा सवाल यह है — क्या सरकार इस मामले की स्वतंत्र जांच कराएगी, या यह खुलासा भी उन सैकड़ों अन्य घोटालों की तरह इतिहास में दफन हो जाएगा?
निष्कर्ष
यह मामला केवल एक एजेंसी और टेंडर तक सीमित नहीं है। यह सवाल उठाता है कि क्या भारत में लोकतांत्रिक संस्थाएँ अब भी पारदर्शिता और जवाबदेही की बुनियादी शर्तों पर खरी उतर रही हैं? जब मीडिया ही सत्ता के करीब होता जाए, तो सच की आवाज़ कौन उठाएगा?
यदि आप चाहें तो इस लेख के अंत में “द वायर की विस्तृत रिपोर्ट पढ़ें…
https://thewire.in/government/rajasthan-dipr-contract-ani-media-asian-yellowgate