
मानहानि केस में हिंदुस्तान टाइम्स और पूर्व रिपोर्टर को झटका, कारोबारी अरुण गुप्ता को 40 लाख रुपये हर्जाना देने का आदेश
नई दिल्ली, 11 जून 2025 — दिल्ली की एक अदालत ने प्रतिष्ठित अखबार हिंदुस्तान टाइम्स और उसके पूर्व रिपोर्टर नीलेश मिश्रा को मानहानि के एक पुराने मामले में बड़ा झटका दिया है। अदालत ने दोनों को व्यवसायी अरुण कुमार गुप्ता को कुल 40 लाख रुपये का हर्जाना अदा करने का आदेश दिया है। यह मामला 2007 में प्रकाशित एक रिपोर्ट से जुड़ा है, जिसमें गुप्ता पर एक कंपनी से “वित्तीय अनियमितताओं” के आरोप में निकाले जाने का दावा किया गया था।
किस हिस्से को कितनी ज़िम्मेदारी?
अदालत ने स्पष्ट किया कि हर्जाना राशि में से 75% हिंदुस्तान टाइम्स को और 25% रिपोर्टर मिश्रा को देना होगा। साथ ही अदालत ने अखबार को 60 दिनों के भीतर सार्वजनिक माफीनामा प्रकाशित करने और भविष्य में गुप्ता के खिलाफ कोई मानहानिपूर्ण सामग्री न छापने का निर्देश भी दिया।
क्या था मामला?
अरुण कुमार गुप्ता ने वर्ष 2000 में इंटेग्रिक्स नामक आईटी कंपनी में निदेशक के रूप में कार्यभार संभाला था। जुलाई 2005 में उन्होंने इस्तीफा देकर अपनी खुद की कंपनी Darts IT Network शुरू की। इसके बाद इंटेग्रिक्स ने 2006 में उनके खिलाफ ईमेल और वेबसाइट हैकिंग के आरोपों में दो केस दर्ज कराए। हालांकि दिल्ली हाईकोर्ट की निगरानी में हुई जांच से यह सामने आया कि संबंधित आईपी ऐड्रेस गुप्ता से जुड़ा था।
जनवरी 2007 में हिंदुस्तान टाइम्स में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई, जिसमें बिना नाम लिए लिखा गया कि एक व्यक्ति को “वित्तीय गड़बड़ियों” के चलते कंपनी से निकाला गया। इसी रिपोर्ट को गुप्ता ने अपनी प्रतिष्ठा के खिलाफ मानते हुए अदालत का रुख किया और अखबार, रिपोर्टर, इंटेग्रिक्स समेत कई पक्षों पर मानहानि का केस दायर किया। बाद में इंटेग्रिक्स और अन्य पक्षों से उनका समझौता हो गया, लेकिन केस हिंदुस्तान टाइम्स और मिश्रा के खिलाफ जारी रहा।
कोर्ट ने क्या कहा?
जिला जज प्रभदीप कौर ने अपने फैसले में कहा कि रिपोर्ट में “बर्खास्तगी” और “वित्तीय अनियमितता” जैसे आरोप बिना किसी ठोस साक्ष्य के लगाए गए थे। रिपोर्ट में जिस शख्स की बात की गई थी, वह गुप्ता ही थे—यह बात गवाहों की गवाही और संदर्भों से स्पष्ट हुई।
जज ने कहा, “गुप्ता की सामाजिक छवि को इस रिपोर्ट से गंभीर क्षति पहुंची। लोगों ने रिपोर्ट के आधार पर उनसे सवाल पूछे और उनकी पेशेवर प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची।”
जनहित और निष्पक्षता की दलीलें खारिज
अदालत ने जनहित में रिपोर्टिंग और निष्पक्ष टिप्पणी जैसी दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि जब तक रिपोर्ट में लगाए गए आरोपों की पुष्टि नहीं हो जाती, तब तक उसे जनहित नहीं माना जा सकता।
अखबार की भूमिका ज़्यादा महत्वपूर्ण: कोर्ट
अदालत ने अखबार को ज़्यादा ज़िम्मेदार ठहराते हुए कहा, “एक संस्था की जिम्मेदारी हमेशा व्यक्तिगत रिपोर्टर से अधिक होती है। ऐसे बड़े मीडिया संस्थान को किसी भी रिपोर्ट के प्रकाशन से पहले ठोस तथ्य और जांच सुनिश्चित करनी चाहिए।