• December 4, 2024

न्यूज़ चैनल में संपादक का पद या चूरन चटनी

 न्यूज़ चैनल में संपादक का पद या चूरन चटनी

संपादक का पद या चूरन चटनी
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पत्रकारिता का बेड़ा गर्क हुआ है तो उसका सबसे बड़ा कारण इलेक्ट्रॉनिक मीडिया है। ये वो जगह है जहाँ कुछ ही महीने में एक साधारण सा रिपोर्टर सीधे संपादक बन जाता है। अब जब उसकी घिसाई हुई नहीं। खबर क्या है उसकी समझ विकसित हुई नहीं तो संपादक बन के वो वही करेगा जो आज हो रहा है। चमचई। शुद्ध रूप से चमचई। उसे पता होता है कि जिस पद पर उसे बिठाया गया है वो अभी इस काबिल नहीं। इसलिए पद मिलने के बाद शुरू होता है संघर्ष। पद बचाने का संघर्ष। संघर्ष को जीत में परिणत करने का आसान रास्ता ज्यादातर पुरुष और महिला पत्रकार के अलग अलग होते हैं। एक गुण सार्वभौमिक होता है – चमचई

अभी कुछ समय पहले ऐश्वर्य कपूर एक रिपोर्टर थे। तब वे Times Now में थे। अर्णब गोस्वामी Times Now से अलग होकर अपना चैनेल Republic लाये तो ऐश्वर्य को भी साथ ले गए। वहाँ रिपोर्टर से पहले ऐश्वर्य को ब्यूरो चीफ की जिम्मेदारी दी गई। आज देख रहा हूँ वो ऐलनिया तौर पर चैनेल के कार्यकारी संपादक हैं। क्या वो इतनी जल्दी इस काबिल हो गये?? 

ऐसे ही News Today Group के राहुल कंवल की पहली खबर आजतक के लिए मुझे आज तक याद है। दिल्ली के गफ्फार मार्केट में कैसे विदेशों से गैरकानूनी रूप से लाया गया मोबाइल unlock कर बेचा जा रहा है। राहुल आज ग्रुप एडिटोरियल डाइरेक्टर के पद पर हैं। ये कोई छोटा मोटा पद नहीं। क्या राहुल इस पद के लिए मांझ दिये गए थे? क्या अभी भी वो इस पद के काबिल हैं? 

कंपनी को काबिल लगते होंगे, तभी जिम्मेदारी दी। 

सोशल मीडिया में ऐसे पत्रकारों की एक मीम viral हो रही है जो मोदी सरकार के कथित तौर पर प्रवक्ता सा काम कर रहे हैं। हाल ही में किसान नेता राकेश टिकैत ने अंजना ओम कश्यप को on air भाजपा का प्रवक्ता कह कर लताड़ लगाई। अब यही होना है। पत्रकारिता अपनी सीमा लांघेगी तो लोग दौड़ाएंगे। मीम बना कर मखौल उड़ाएंगे। एकतरफा पत्रकारिता ने मीडिया को गहरे घाव दिये हैं। इसका बड़ा कारण है इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में अपरिपक्व पत्रकार, एंकर की खड़ी होती फौज। किसी भी मौके पर जिसके पास पूछने को एक फूहड़ सवाल होते हैं – कैसा लग रहा है? 

अखबारी जगत में पत्रकारों को लोकल से ब्यूरो में आना और विशेष संवाददाता बन जाना, इतने में लगता था जैसे गंगा नहा लिया। ब्यूरो चीफ फिर संपादक तक पहुँचने की आस गिनती के पत्रकारों को होती थी, क्योंकि ऐसे पदों पर पहुँचने के लिए तमाम तरह की घिसाई के बाद तील तिकडम के गुण भी जरूरी होते हैं। अखबारों के संपादक पहले वाकई होनहार होते थे। गिरावट के इस दौर में अखबारों में भी अब ढेरों ऐसे उदाहरण हैं। जिन्हें चार लाइन शुद्ध लिखने नहीं आती मगर वे खुद को ढंग से बेचने का हुनर जानते हैं। संपादक, समूह संपादक तक बन रहे हैं। जुगाड़ से बन तो रहे हैं पर एक बार गिरे तो फिर संभल नहीं पा रहे हैं। संभलने का हुनर सीखने से पहले दौड़े जा रहे हैं। 

फिर भी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में तरक्की अपेक्षाकृत आसान है। वहाँ अंधा में काना राजा बनना आसान है। अखबारों में अभी भी उतनी आसानी नहीं। यहाँ काम जानने वाले खिलाडी भी हैं घाघ भी। आज के समय में मीडिया इंडस्ट्री का हाल बेहाल है। एकतरफा हाऊँ हाऊँ…कोरोना और सरकारों की नीति, सबने मीडिया जगत को लील लिया है। रही सही कसर चूरन चटनी की तरह बटने वाले संपादक के पद ने पूरी कर दी है।  

(वरिष्ठ पत्रकार शिशिर सोनी )


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