
छोटे से शहर की गलियों में इन दिनों एक नया नज़ारा देखने को मिल रहा है। हर कोई जिसके हाथ में मोबाइल है, वो ख़ुद को पत्रकार समझने लगा है। न रिक्शा खींचने में कोई शर्म, न तांगा चलाने में, न सड़क किनारे चाय बेचने में — लेकिन मोबाइल का कैमरा ऑन होते ही ये लोग अचानक ‘जनता के प्रहरी’ बन जाते हैं।
एक किस्सा शहर के तहसील कार्यालय से शुरू हुआ। चाय का ठेला लगाने वाले रमेश ने अपने मोबाइल पर लाइव वीडियो चालू किया और सीधा बाबुओं के कमरे में घुस गया। ज़ोर से बोला —
“देखिए जनता! ये देखिए कैसे सरकारी अधिकारी कुर्सियों पर बैठे-बैठे हमारा हक़ खा रहे हैं!”
सभी कर्मचारी सकपका गए। रमेश ने वीडियो में दस्तावेज़ दिखाए, बाबुओं के चेहरे पर ज़ूम किया और तुरंत फ़ेसबुक पर डाल दिया। थोड़ी ही देर में हज़ारों व्यूज़ आ गए।
फिर दूसरा मामला। रेलवे स्टेशन के बाहर तांगा खींचने वाला शकील, अपने मोबाइल पर ‘तांगा टाइम्स’ नाम से चैनल चला रहा था। उसने प्लेटफॉर्म पर खड़ी ट्रेन में गंदगी का वीडियो बना डाला और बोला —
“जनता देख रही है! रेलवे विभाग की लापरवाही के सबूत आपके सामने हैं। अगर कार्रवाई न हुई तो अगली बार डीआरएम दफ़्तर में घुसकर लाइव करूंगा!”
इसी तरह रिक्शा वाला रामू भी पीछे नहीं रहा। उसने सड़क के गड्ढों का वीडियो बनाया और मेयर को टैग करके लिखा —
“अगर सड़क ठीक न हुई तो अगली बार मेयर की कुर्सी पर बैठकर प्रेस कॉन्फ़्रेंस करूंगा!”
सरकारी कर्मचारी और अफ़सर अब इन ‘मोबाइल पत्रकारों’ से परेशान हैं। कोई पानी नहीं पिला रहा, कोई बैठने नहीं दे रहा, सब डर के मारे सीधे-सीधे जवाब दे रहे हैं।
शहर के वरिष्ठ पत्रकारों का कहना है कि पत्रकारिता एक ज़िम्मेदारी है, लेकिन आजकल हर मोबाइल वाला खुद को पत्रकार मान बैठा है। प्रशासन ने भी चेतावनी दी है कि बिना पहचान और अनुमति के इस तरह सरकारी कामकाज में बाधा डालने वालों पर कार्रवाई की जाएगी।
लेकिन रमेश, शकील और रामू को इस सब की कोई फ़िक्र नहीं। वे आज भी अपने रिक्शे, तांगे और ठेले के साथ-साथ अपने ‘न्यूज़ चैनल’ भी चला रहे हैं और सरकारी दफ्तरों में धड़ल्ले से रौब झाड़ रहे हैं।
संपादक संजय कश्यप (bhadas2media.com)