वो एक सितारा
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अपने फेसबुक पर लेखन के शुरुआती दिनों में मैंने आपको शाहरूख खान की ये कहानी सुनाई थी। शाहरुख खान के बारे में कोई क्या सोचता है, मुझे फर्क नहीं पड़ता। मेरे लिए शाहरुख एक सितारा हैं। मैंने खुद उनसे बहुत कुछ सीखा है। पढ़ाई के दिनों से मैं उनका प्रशंसक रहा हूं। उनसे जब भी मिला, उनका साथ बहुत सुखद रहा। वो शानदार इंसान हैं, उम्दा कलाकार हैं।
अभी जो कहानी मैं आपको सुना रहा हूं उसे नवंबर 2013 में आपको सुना चुका हूं।
आपसे अनुरोध है कि कहानी पढ़ कर प्लीज़ हृदय भेदने वाले कमेंट मत कीजिएगा। शाहरुख खान इन दिनों तकलीफ में हैं। उनके दुख की इस घड़ी में मैं वो कहानी याद कर रहा हूं जिस कारण मैंने उन्हें सितारा कहा था।
बहुत छोटा था तब ध्रुव तारा की कहानी सुनते हुए मैंने मां से पूछा था कि सितारा कैसे बनते है- मां ने कहा था- मेहनत, किस्मत और नीयत से। तब समझ में नहीं आया था कि मां क्या कहना चाह रही है।
बात सर्दियों की है। सर्दी की उस रात मैं शाहरुख खान से मिला था। वो हमारे दफ्तर आए थे, हम काफी देर तक साथ बैठे, फिर दफ्तर की कैंटीन में हमने रात एक बजे खाना खाया, गप-शप की और सर्द रात में करीब ढाई बजे वो निकल गए।
शाहरुख खान से हमारी बातचीत का बहुत बड़ा हिस्सा उनकी आने वाली फिल्म थी, और फिर डिनर के वक्त उनके पहले टीवी सीरियल फौजी की यादें थीं। जिस साल मैं आईआईएमसी में पढ़ रहा था, उसी साल शाहरुख दिल्ली में जामिया इंस्टीट्यूट से पत्रकारिता का कोर्स कर रहे थे और फौजी की शूटिंग भी।
शाहरुख पहली मुलाकात में ही काफी गर्मजोशी से मिले थे। मैं कई बार फौजी की शूटिंग में सेट पर गया और अपने अखबार में शूटिंग की रिपोर्ट भी छापी। मैं पढ़ाई के साथ जनसत्ता में नौकरी कर रहा था। तब पत्रकारिता, थिएटर और फिर टीवी सीरियल आपस में मिल कर भी जुदा-जुदा थे। शाहरुख टाइम पर शूटिंग करने पहुंचते थे, दोस्तों को खूब हंसाते थे।
फौजी टीवी पर आने लगा था। दिल्ली का लड़का दिल्ली में ही हीरो बन चला था। शाहरुख शूटिंग के दौरान ही पॉपुलर होने लगे और लगने लगा कि ये हीरो टीवी के कई और सीरियल में आएगा। फौजी के बाद सर्कस आया। लेकिन शाहरुख की ये मंजिल नहीं थी।
हमारी पढ़ाई पूरी हो चुकी थी। मैं दिल्ली में ही पूरी तरह नौकरी में व्यस्त हो गया, शाहरुख खान मुंबई चले गए। उसके बाद शाहरुख खान के बारे में कुछ बताने की कोई ज़रुरत नहीं। बाकी की कहानी तो खुली किताब है।
समय बीतता गया। मैं अखबार की दुनिया से निकल कर इलेक्ट्रानिक मीडिया में चला आया। कुछ सालों तक अमेरिका रहा। कई आर्टिकल लिखे, किताब लिखी, दुनिया घूमा, रिपोर्टिंग की, नेताओं से मिला, अभिनेताओं से मिला लेकिन शाहरुख नाम का वो लड़का जिसे आज मैं आप कह कर संबोधित कर रहा हूं, मेरे ज़ेहन से कभी नहीं मिटा । पत्रकारिता की वजह से हम बाद में भी कई बार मिले। लेकिन उन सर्दियों की वो मुलाकात हम दोनों के लिए अलग थी। हमने पुरानी यादों को ताजा किया। दफ्तर की कैंटीन में रात के दो बजे शाहरुख खान ने फौजी की उस हीरोइन को याद किया जो मेरे साथ आईआईएमसी में पत्रकारिता की पढ़ाई कर रही थी। शाहरुख ने पूछा कहां हैं वो?
सच ये है कि आईआईएमसी से निकलने के बाद मैंने कभी किसी के बारे में जानने की कोशिश ही नहीं की। लेकिन शाहरुख खान ने उन्हें याद किया। मुझे शर्म भी आई कि अपने एक दोस्त के बारे में कुछ पता करने की मैंने कभी जहमत नहीं उठाई।
डिनर के बाद हम ऑफिस की लिफ्ट से साथ साथ उतरे। रात के ढाई बज चुके होंगे। घना कोहरा था। मैंने शाहरुख से पूछा, “दिल्ली की सर्दी याद आती है?”
शाहरुख ने चहकते हुए कहा था, “बहुत याद आती है।“
चलते-चलते मैंने पूछा था इतनी रात में कहा जाएंगे?
शाहरुख ने कहा था, “घर जाऊंगा।”
हम गले मिले और फिर मिलने का वादा कर अलग हो गए। कोहरा बहुत था।
घर जाना मुश्किल लग रहा था। मैं अपने ड्राइवर से पूछना चाह रहा था कि गाड़ी चलाने में मुश्किल तो नहीं आएगी? पूछता इसके पहले ही मेरे ड्राइवर ने मुझसे पूछा, “सर, शाहरुख खान अपनी मां से मिलने गए हैं?”
“मां से?” मैं चौंका।
ड्राइवर ने बताया कि जब शाहरुख साहब के साथ लिफ्ट से नीचे उतर रहे थे, तब उन्होंने पूछा था कि टॉर्च मिल जाएगी? मुझे अपनी मां से मिलने जाना है। शाहरुख अपनी मां से बेइंतहा मुहब्बत करते थे, करते हैं। मैं जानता हूं। उन्होंने मुझसे कहा था घर जाऊंगा, लेकिन ये नहीं कहा था कि इतनी रात वो अपनी मां से मिलने उनकी मजार पर जाएंगे।
ये शाहरुख खान हैं, जब भी मिलते हैं, पुराने दोस्तों को याद करते हैं। रात के ढाई बजे धुंध में मां की मजार पर अकेले जा कर उनसे बातें करते हैं। मैं ड्राइवर से कह रहा था.. “कार धीरे चलाना, धुंध है।”
रास्ते भर सोचता रहा, इतनी धुंध में शाहरुख खान गए हैं मां की मजार पर।
दरअसल वो इतने बड़े सितारे हैं कि दिन में चाह कर भी मां से नहीं मिल सकते। लोगों की भीड़ उन्हें मां से नहीं मिलने देगी।
कोहरा बहुत था। शाहरुख खान कोहरे को चीरते हुए मां से मिलने जा रहे थे।
बहुत सोचा। जो यादों को जिंदा रखते हैं, जो यादों की परवाह करते हैं और जो यादों से मिलने के लिए धुंध को चीर देते हैं वही सितारा बनते हैं।
वर्ना हम सभी सितारा नहीं बन जाते?
संजय सिन्हा पत्रकार
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