पत्रकार !
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पिछले करीब पांच साल से घर बैठे और बेरोजगार इस नाचीज को रोजगार की उम्मीद से हाल ही में एक मीडिया संस्थान में काम करने जाने का मौका मिला। वो एक दोमंजिला इमारत है, जिसकी सीढियां चढ़ते हुए एक दीवार पर मुझे पढ़ने को मिला “एक डरा हुआ पत्रकार लोकतंत्र में मरे हुए नागरिक को पैदा करता है !’ तीस साल हो गए मुझे पत्रकारिता में, लेकिन यह कमाल का वाक्य इसके पहले कभी नहीं पढ़ा था।
सो जिज्ञासा हुई कि ऐसा किस विभूति ने कहा है ? जवाब के लिए गूगल की मदद ली। जो मिला, उस पर आगे बात करेंगे, पहले एक किस्सा। जी हां, हुआ यह कि कोई दो दशक पहले अपन एक अखबार में रिपोर्टर थे। वहां एक खबर लिखी। हुआ यह कि उसका हेडिंग अपन ने सवाल के रूप में लिखा ! नौसिखिये थे तब अपन।
अखबार के तत्कालीन बहुत गुणी संपादक ने उसे देखा तो मुझे बुलाया और कहा, बल्कि मंत्र दिया कि पत्रकार का काम समाज या पाठकों को सवाल परोसना नहीं है, अपितु उनके जवाब देना है ! आगे बोले कि पत्रकार का काम समाज के सवालों का जवाब सुझाना है, न कि उसको सवालों में उलझाना ! बात मार्के की थी और अपन ने पाया कि किसी भी अखबार में प्रश्नवाचक चिन्ह के साथ कभी कोई हेडिंग देखने में नहीं आया था। आप सबने भी कभी नहीं देखा होगा। खैर।
बाद में अपन ने पाया कि सवाल करना बहुत आसान काम है अलबत्ता सवालों के जवाब प्रस्तुत करने में बहुत बुद्धि और हिम्मत या निडरता जरूरी। उधर, वहां लिखा हुआ था कि डरा हुआ पत्रकार (!) लोकतंत्र में मरा हुआ नागरिक पैदा करता है ! मुझे सहज जिज्ञासा हुई कि इतना उम्दा कोट आखिर किसका है ? मैंने यह वाक्य गूगल पर डाला और सर्च का चिन्ह दबाया।
जवाब में देखकर घोर आश्चर्य हुआ कि मौलाना रविश कुमार ने यह बात कही थी ! बहरहाल उससे भी ज्यादा अचरज की बात यह है कि पिछले कई बरसों में स्वर्गीय रोहित सरदाना से लेकर सुधीर चौधरी तक बेशुमार राष्ट्रवादी पत्रकारों ने देश के अनेक ज्वलंत प्रश्नों की पड़ताल और उनके जवाब बिना डरे देश के सामने लगातार प्रस्तुत किए, लेकिन इसी रविश कुमार ने उन्हें गोदी मीडिया और डरे हुए पत्रकार बताने में अपनी पूरी ऊर्जा झोंक दी। जो हो। अपना कहना है कि यह सब डरे हुए पत्रकार यदि लोकतंत्र में मरे हुए नागरिक पैदा कर रहे हैं तो यह भी एक ठोस और वाजिब कारण है कि देश की सरकार जनसंख्या नियंत्रण पर जल्द कानून लाए। मरे हुए नागरिक पैदा हों तो वो देश के किस काम के ?
चंद्रशेखर शर्मा
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