
रायपुर में पत्रकारों पर बाउंसरों का हमला: पिस्टल लहराई, पुलिस मूकदर्शक बनी रही, फिर गंजा कर निकाला जुलूस
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर का मेकाहारा (अंबेडकर अस्पताल) एक बार फिर सुर्खियों में है — इस बार इलाज या स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर नहीं, बल्कि पत्रकारों पर खुलेआम पिस्टल लहराने और धमकाने की घटना को लेकर। मामले में तीन बाउंसरों ने न सिर्फ पत्रकारों को जान से मारने की धमकी दी, बल्कि सरकारी अस्पताल के भीतर गुंडागर्दी का ऐसा नंगा नाच किया कि लोकतंत्र की चौंथी ताक़त को भी सड़क पर आकर इन्साफ माँगना पड़ा।
पिस्टल वाला डॉन’ और बाउंसर एजेंसी का आतंक
घटना तब हुई जब कुछ स्थानीय पत्रकार रायपुर के अंबेडकर अस्पताल में चाकूबाजी में घायल एक व्यक्ति की रिपोर्टिंग करने पहुँचे। तभी एक निजी बाउंसर एजेंसी के कर्मचारी, जिनमें से एक खुद को ‘वसीम डॉन’ कह रहा था, ने पत्रकारों को धमकाते हुए पिस्टल लहराई और कहा — “गोली मार देंगे।” वसीम की बाउंसर एजेंसी को अस्पताल में ‘सुरक्षा व्यवस्था’ देखने का जिम्मा सौंपा गया था, लेकिन रिपोर्टिंग कर रहे पत्रकारों को बाहर निकालना और धमकाना क्या इसी जिम्मेदारी का हिस्सा था?
पुलिस की खामोशी: पत्रकार बाहर, डॉन अंदर
इस हमले के बाद पत्रकारों ने जब पुलिस से शिकायत की तो पुलिस ने पत्रकारों को अस्पताल के बाहर रोक दिया। लेकिन वही पुलिस ‘डॉन’ को अस्पताल में बेरोकटोक अंदर जाने दे रही थी। डॉन ने उल्टा बाउंसरों की वीडियो बनाकर पत्रकारों के खिलाफ प्रचार शुरू कर दिया। महिला सुरक्षाकर्मियों को पत्रकारों के खिलाफ इस्तेमाल करने की भी कोशिश हुई। कैमरे चालू थे, वरना कहानी कुछ और हो सकती थी।
बाउंसरों को गंजा कर निकाला गया जुलूस
लगातार दो घंटे तक चले तनाव के बाद पत्रकारों ने मुख्यमंत्री आवास का रुख किया। दबाव बना तो प्रशासन हरकत में आया। अस्पताल अधीक्षक ने पत्रकारों से माफी मांगी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने तीनों बाउंसरों को गिरफ़्तार कर उनके सिर मुंडवाकर गली में जुलूस निकाला। पत्रकारों ने इस जुलूस की “आगवानी” की, यह दृश्य अब सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है।
स्वास्थ्य मंत्री की चेतावनी: “ऐसे लोगों को मिट्टी में मिला देंगे”
मामले की गंभीरता को देखते हुए छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री ने बयान दिया, “जो लोग लोकतंत्र के प्रहरी यानी पत्रकारों पर हाथ उठाते हैं, उन्हें मिट्टी में मिला देंगे। अस्पताल में बाउंसरों की जरूरत नहीं, सुरक्षा की जरूरत है — वो भी नागरिकों की।”
पत्रकार बोले — “आज हम बचे हैं, कल कोई और नहीं बचेगा”
पत्रकारों ने इस हमले को लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी बताया है। उनका कहना है कि “हम लोग जनता से जुड़े मुद्दे उठाते हैं। हम पर पिस्टल तानी जाती है, हमसे धक्का-मुक्की की जाती है और प्रशासन चुप बैठा रहता है। अगर कल कोई मारा गया तो क्या देश सिर्फ IPL ही देखता रहेगा?”
निष्कर्ष:
सरकारी अस्पताल में बाउंसर एजेंसियों का ‘डॉनगिरी’ करना और पुलिस का मूकदर्शक बने रहना — यह महज एक स्थानीय घटना नहीं, बल्कि उस लापरवाही और संवेदनहीनता का आईना है जो अब धीरे-धीरे संस्थागत हो रही है। पत्रकारिता पर हमला लोकतंत्र पर हमला है। और जब एक समाज अपने सच्चे आइने को ही तोड़ देता है — तब वो सिर्फ अंधेरे में रह जाता है।