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यह वीमेंस प्रेस क्लब कब अस्तित्व में आ गया जबकि मंच के पीछे वुमंस प्रेस क्लब दर्ज था

 यह वीमेंस प्रेस क्लब कब अस्तित्व में आ गया जबकि मंच के पीछे वुमंस प्रेस क्लब दर्ज था

प्रदेश के प्रशासनिक महकमे में मनोज श्रीवास्तव का नाम उनके कद के ऐन उलट है। अलहदा है। विदित हो कि नाटे कद के ये नौकरशाह कुछ समय पहले तक मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव होते थे। अब रिटायर्ड हैं।

इनकी प्रशासनिक खूबियां अपनी जगह लेकिन अपनी विशिष्ट अभिरुचि के चलते एक विशेष किस्म का अभिजात्य इनके साथ कदमताल करता चलता है। जी हां, उनकी यह रुचि है अध्ययन, मनन और लेखन। उस लेखन में यह नजरिए और भाषा का जो लालित्य बिछाते हैं वो इन्हें उस ‘अभिजात्य’ से नवाजता है। यही मनोज श्रीवास्तव इंदौर की चर्चित बिल्डिंग राज टॉवर को बम धमाकों से जमींदोज कर पूरे प्रदेश का चर्चित नाम हुए थे। तब यह इंदौर कलेक्टर थे। रिपोर्टिंग के चलते अपना भी कलेक्टोरेट में नियमित जाना-आना था।

बहरहाल बाद में इनके लेख अखबारों में पढ़ने में आये और लेखन पहली सूरत में ही, जेहन को पकड़ने वाला लगा था। अब तो यह कुछेक पुस्तकें लिख चुके हैं। खास इन्हीं को देखने-सुनने की इच्छा से कल अपन ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर के शानदार हॉल में हुए वुमंस प्रेस क्लब के नेशनल टॉक शो और सम्मान समारोह में हाजिर थे। क्लब की अध्यक्ष सुश्री शीतल रॉय मैदानी और तेजतर्रार पत्रकार भी हैं। बहुत कम समय में उन्होंने इस क्लब को बखूब बुलंदियों तक पहुंचाया है। मंच पर यही मनोज श्रीवास्तव, सांसद शंकर लालवानी, वरिष्ठ पत्रकार जयराम शुक्ल, रमण रावल, पूर्व विधायक जीतू जिराती, भाजपा नेत्री कविता पाटीदार और अन्य लोग बतौर वक्ता और अतिथि उपस्थित थे। यद्यपि सामने का जमावड़ा भी कम वजनदार न था।

चूंकि अपन देर से पहुंच पाए, सो केवल श्रीवास्तव को ही पूरा सुन पाए। उसी सुनने में सबको नामी पश्चिमी विचारक मिले, हिन्दू देवी-देवता और असुर मिले और नारी की एक नयी मूरत मिली ! शुरुआत उन्होंने कुछ इस तरह की। ” यह वीमेंस प्रेस क्लब कब अस्तित्व में आ गया ? मैं इंदौर कलेक्टर भी रहा और सीपीआर यानी जनसंपर्क आयुक्त भी, लेकिन कभी इसके बारे में कुछ सुनने में नहीं आया।” इसमें दो बातें गौरतलब थीं। पहली यह कि वो वीमेंस प्रेस क्लब बोल रहे थे जबकि मंच के पीछे वुमंस प्रेस क्लब दर्ज था ! सो आपका भाषा का आग्रह अभिजात्यपने से लेकर मवालीपने तक को, जाहिर करने की आपको सुविधा भी देता है ! दूसरी गौरतलब बात यह कि जिस क्लब के बारे में उन्हें ठीक माहिती न थी, उसी में वो अतिथि बतौर हाजिर थे !

जो हो, यह तय है कि पत्रकारों के लिए वो बहुत दोस्ताना और उदारमना माने जाते रहे। आगे सुनिए। वो बोले कि एक पश्चिमी विचारक ने कहा है औरतें या स्त्रियां ‘सोललेस’ होती हैं। सोललेस यानी आत्मा से खाली। दूसरे विचारक ने कहा है कि स्त्री अपूर्ण पुरुष होती है ! इसके उलट हमारे यहां तो जब देवता संकट में आए तो महिषासुर मर्दिनी का आश्रय लिया। सो उन पश्चिमी विचारकों के पूर्वजों से भी बहुत पहले, सदियों पहले हमने स्त्री में सब कुछ खोज-देख लिया था। यही नहीं, मनोज श्रीवास्तव ने इस सिलसिले में दुर्गा सप्तशती से लेकर अपने कई वेद-पुराणों का जिक्र भी किया। वो बोले जा रहे थे, लेकिन सामने मौजूद स्त्रियों में से ज्यादातर कहीं और ही मशगूल थीं। ऐसे में ज्यादा कौन बोलता है ? विद्वान तो किसी सूरत नहीं। सो वो भी ज्यादा नहीं बोले और जल्द ही सबको प्रणाम कर वापस अपनी कुर्सी पर थे। अपने लिए ये अखरने वाला था।

बहरहाल फिर स्त्री शक्ति के तौर पर अलग-अलग फील्ड की चालीस से भी ज्यादा महिलाओं को अतिथियों ने सम्मानित किया। सम्मानित होने वाली महिलाओं में प्रदेश के आदिवासी अंचलों में सक्रिय महिलाओं से लेकर सेंट्रल जेल की अधीक्षक अलका सोनकर भी शामिल थीं। कार्यक्रम का संचालन सुनयना शर्मा ने किया और बढ़िया किया। बताया गया कि कार्यक्रम में शामिल अनेक महिलाओं का श्रृंगार उन्नति सिंह ने किया था। कामना है कि स्त्रियां खूब उन्नति करें !

चंद्रशेखर शर्मा

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