पत्रकारपुरम पर भू-माफियाओं का कब्ज़ा: पत्रकारों की ज़मीन पर धड़ल्ले से हो रहा अवैध निर्माण, प्रशासन और पुलिस बने मौन दर्शक
वाराणसी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में पत्रकारों के लिए प्रस्तावित पत्रकारपुरम कॉलोनी इन दिनों भू-माफियाओं की अराजकता का शिकार हो चुकी है। पत्रकारों को आवंटित भूखंडों पर बाहरी दबंग तत्व जबरिया कब्ज़ा जमाकर पक्के मकान खड़े कर रहे हैं। गिट्टी, बालू और सरिया से भरी गाड़ियां रात-दिन कॉलोनी में दौड़ रही हैं और ईंट-पत्थरों की दीवारें तेजी से खड़ी की जा रही हैं। सबसे हैरानी की बात यह है कि बुलडोज़र की राजनीति करने वाली सरकार के नुमाइंदे इस पूरे मामले में चुप्पी साधे बैठे हैं।
नोटिस कागज़ों तक सीमित, निर्माण जमीन पर तेज़
वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) की ओर से अवैध निर्माण पर नोटिस तो जारी किए गए हैं, लेकिन वह केवल औपचारिकता बनकर रह गए। जिन भूखंडों पर नोटिस चस्पा किए गए, वहीं अगले ही दिन और तेज़ी से दीवारें उठती दिखीं। न तो वीडीए ने बुलडोज़र भेजा, न ही पुलिस बल तैनात हुआ। कब्ज़ाधारी इस कदर बेखौफ हैं कि वे खुलेआम कहते फिर रहे हैं—“जो करना है कर लो, हमें कोई छू नहीं सकता।”
पत्रकारों का गुस्सा चरम पर
जिन पत्रकारों को वर्षों के इंतजार के बाद भूखंड आवंटित हुए, वे आज खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार तुषार शर्मा, पंकज रस्तोगी, राकेश सिंह, कौशल पांडेय, विजय सिंह, रमेश सिंह और शरद मौर्य जैसे नामों की जमीनों पर दबंगों ने कब्ज़ा जमा रखा है। तुषार शर्मा का कहना है,
“अगर पत्रकारों की कॉलोनी ही सुरक्षित नहीं रह पाई तो फिर आम जनता की बस्ती का क्या होगा? भू-माफिया खुलेआम कब्ज़ा कर रहे हैं और अधिकारी आंख मूंदे बैठे हैं। यह सिर्फ़ लापरवाही नहीं, बल्कि मिलीभगत का नतीजा है।”
पत्रकारों ने साफ कहा कि प्रशासनिक उदासीनता और पुलिस की खामोशी इस बात का संकेत है कि कहीं न कहीं पूरी मशीनरी दबाव में है।
उपाध्यक्ष के आश्वासन, ज़मीन पर हकीकत उलट
पत्रकारों ने कई बार वीडीए उपाध्यक्ष से मुलाकात की, ज्ञापन भी सौंपा। हर बार उन्हें यही भरोसा मिला कि “कब्ज़ा रोका जाएगा और बुलडोज़र चलेगा।” लेकिन कॉलोनी में खड़े होते मकान बताते हैं कि आश्वासन सिर्फ़ मीठे शब्द थे, कार्रवाई नहीं। न कोई एफआईआर दर्ज हुई, न ही अतिक्रमण रोकने के ठोस कदम उठाए गए। इस वजह से वीडीए की साख और उसकी कार्यक्षमता दोनों पर गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं।
स्थानीय नागरिक भी चिंतित
पत्रकारपुरम का मामला सिर्फ़ पत्रकारों का नहीं, बल्कि पूरे समाज का हो चला है। वरिष्ठ पत्रकार शरद मौर्य का कहना है,
“अगर पत्रकारों की कॉलोनी भी भू-माफियाओं से नहीं बच सकी, तो आम आदमी की बस्ती का क्या होगा? बुलडोज़र की राजनीति करने वाली सरकार आखिर इन माफियाओं तक क्यों नहीं पहुंच रही? प्रशासन किस दबाव में है?”
स्थानीय लोगों में भी यह डर बैठ गया है कि जब दबंग पक्के मकान खड़े कर लेंगे, तब उन्हें हटाना और भी मुश्किल हो जाएगा।
कानून व्यवस्था के लिए खुली चुनौती
वीडीए के रिकार्ड्स साफ दिखाते हैं कि जिन भूखंडों पर निर्माण हो रहा है, वे पत्रकारों के नाम से आवंटित हैं। इसके बावजूद कब्ज़ाधारी खुलेआम अवैध निर्माण कर रहे हैं। यह न केवल गैरकानूनी है, बल्कि प्रशासनिक तंत्र और कानून व्यवस्था दोनों के लिए खुली चुनौती है।
बड़ा सवाल
अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या सरकार और प्रशासन इस मुद्दे पर गंभीरता से कार्रवाई करेगा या यह प्रकरण भी वर्षों तक फाइलों में दबा रह जाएगा?
पत्रकारपुरम की ज़मीन पर हो रहा जबरिया कब्ज़ा इस बात का प्रतीक है कि वाराणसी में भू-माफियाओं का नेटवर्क इतना मजबूत है कि प्रशासन और पुलिस दोनों उनके सामने बेबस नज़र आते हैं। बुलडोज़र की बात करने वाली सरकार भूमाफिया के आगे फिलहाल बौनी दिखाई दे रही है।
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