
हरिद्वार, जहां गंगा बहती है और धर्म की पवित्रता गूंजती है, वहीं अब एक पत्रकार की साख पर कालिख पुत गई है। एक ऐसा पत्रकार जो कभी ईमानदार रिपोर्टिंग का दावा करता था, अब “लिफाफा पत्रकार” के नाम से कुख्यात होता जा रहा है।
सूत्रों के अनुसार, यह पत्रकार बार-बार ऐसे मुद्दों पर चुप्पी साधता नजर आता है, जिन पर सवाल उठाना चाहिए था। स्थानीय घोटाले, अवैध निर्माण, सरकारी लापरवाही — ये सभी विषय उसकी नजरों से ‘अछूते’ रहे। लेकिन अब यह स्पष्ट हो चुका है कि उसकी चुप्पी कोई नैतिक निर्णय नहीं, बल्कि “लिफाफे” का असर है।
माना जा रहा है कि वह अक्सर कार्यक्रमों में पहुंचने से पहले ही ‘सौदेबाज़ी’ कर लेता है। खबर चलाने या दबाने का रेट तय होता है। किसी की छवि चमकानी हो तो मोटा लिफाफा थमा दो, और किसी को बदनाम करना हो तो एक और लिफाफा तैयार रखो। पत्रकारिता अब उसके लिए न जिम्मेदारी है, न जनसेवा — बस एक धंधा है।
हरिद्वार के कई नेताओं के साथ उसकी नजदीकियां अब छिपी नहीं हैं। मंचों पर उनके साथ दिखना, प्रेस कॉन्फ्रेंस में सिर्फ उनकी तारीफ करना और विरोधियों को पूरी तरह नजरअंदाज़ करना — यह सब इशारा करता है कि पत्रकार अब स्वतंत्र नहीं, बल्कि “भाड़े का खिलाड़ी” बन चुका है।
स्थानीय लोगों में इस पत्रकार को लेकर भारी रोष है। सोशल मीडिया पर उसके खिलाफ #लिफाफा_पत्रकार ट्रेंड कर चुका है। कई व्यापारियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाए हैं कि यदि वे ‘कुछ नगद सम्मान’ न दें, तो उनकी खबरें तोड़-मरोड़ कर दिखाई जाती हैं, या फिर पूरी तरह गायब कर दी जाती हैं।
इस पत्रकार ने धर्म और संस्कृति की आड़ में खुद को “सनातनी पत्रकार” की पहचान दे रखी है, मगर हकीकत यह है कि वह गंगा किनारे बैठकर सत्य की नहीं, चांदी की पूजा करता है। धर्म का नाम लेकर अपने स्वार्थ पूरे करने वाला यह चेहरा अब हरिद्वार की साख पर दाग बन चुका है।
हरिद्वार की मिट्टी में जब पत्रकारिता जैसा पवित्र कार्य “लिफाफा संस्कृति” का शिकार हो जाए, तो समाज को जागना होगा। सवाल पूछने वाला जब बिक जाए, तो जवाब कौन देगा? ऐसे पत्रकार सिर्फ अपने पेशे को ही नहीं, पूरे समाज को धोखा दे रहे हैं।
हरिद्वार से एक पत्रकार द्वारा भेजी गई मेल के आधार पर