• July 27, 2024

स्नेहा दुबे और अंजना ओम कश्यप जैसी भारत की बेटियों पर हमे नाज़ है

 स्नेहा दुबे और अंजना ओम कश्यप जैसी भारत की बेटियों पर हमे नाज़ है

बेटी दिवस पर एक बेटी की खिल्ली तो मत उड़ाइए

नहीं मानता कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अमेरिका दौरे की कवरेज करने गईं आजतक चैनल की एंकर/रिपोर्टर अंजना ओम कश्यप की बेइज्जती हुई है। भारतीय विदेश सेवा की चर्चित अधिकारी स्नेहा दुबे ने अंजना को बाहर जाने को ज़रूर कहा पर इसे बेइज्जती नहीं कहा जाएगा, कम से कम ज़मीनी पेशेवर पत्रकार तो इस बात को सझते ही होंगे।
जिस वीडियो को महिला पत्रकार की बेइज्जती बताकर सोशल मीडिया पर पेश किया जा रहा है वो बेइज्जती नहीं बल्कि फर्ज निभाने की बानगी है। सच ये है कि वायरल वीडियो में भारत की ये दोनों बेटियां (स्नेहा और अंजना) अपनी-अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाते हुए दिख रही हैं।
मेरा खुद का ज़मीनी अनुभव है कि जब हम पत्रकार खबर निकालने की जद्दोजेहद के दौरान भगाए जाते हैं तब लगता है कि हम अस्ल रिपोर्टिग या अस्ल पत्रकारिता कर रहे हैं। और जब हमें बाइट/बयान या खबर को थाल की तरह सजा कर परोस दिया जाए तो वो न तो अस्ल रिपोर्टिंग होती हैं और न ही अस्ल पत्रकारिता। परोसी हुई खबरों की पत्रकारिता करने वाला पोस्टमैन की भूमिका तक सीमित रहता है। आसानी से बाइट कलेक्शन करने वाले कभी बड़े पत्रकार नहीं बन पाते। खबर निकालने की कशमकश, संघर्ष, बेचैनी.. के दौरान खालिस रिपोर्टर को अक्सर भगा दिया जाता है।बेइज्जत होना पड़ता है। जेल जाना पड़ता है। मार खानी पड़ती है। मुकदमें झेलने पड़ते हैं। और यहां तक कभी मर जाना भी पड़ता है।
ताजुब है जिस आजतक की रिपोर्टर/एंकर से हम डेढ़ दशक से ज्यादा वक्त से देश-दुनिया की ख़बरों से रूबरू होते रहे हैं उसी महिला रिपोर्टर से अमेरिका में स्नेहा दुबे बाइट देने के बजाय बाहर जाने के लिए कहती हैं तो हम इस वीडियो को देखकर चटकारे ले रहे हैं। खिल्ली उड़ा रहे हैं। कह रहे हैं कि अच्छा हुआ जो भगाई गई।
क्या मतलब है इन बातों का !
अमेरिका में कवरेज के दौरान देश बेटी की एक वीडियो क्लिप जब अपमान के मज़ाक की सूरत में जब सोशल मीडिया पर वायरल हो तो इत्तेफाक कि आज बेटी दिवस है। और इस तरह बेटी नहीं बल्कि बेटी दिवस ख़ुद शर्मिंदा होता नज़र आ रहा है।
जिस देश की बेटियों को सदियों तक गोबर के उपले थापने के काम तक सीमित रखा गया है उस देश की एक बेटी (अंजना ओम कश्यप) इतनी बड़ी पत्रकार ऐसे ही नहीं बन गई होगी। मीडिया जैसे जटिल पेशे में एक बेटी के संघर्ष का अंदाज़ा लगाना भी कठिन हैं, हां किसी का मजाक उड़ाना बहुत आसान है।
स्नेहा दुबे और अंजना ओम कश्यप जैसी भारत की बेटियों पर हमे नाज़ है।

– नवेद शिकोह

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