“पत्रकारों से भिड़े के DFO, मासूम की मौत पर सवाल पूछने पर छीने मोबाइल” देखे वीडियो

उत्तर प्रदेश के बहराइच जनपद से एक चिंताजनक घटना सामने आई है, जहाँ जिला वन अधिकारी (DFO) अजीत प्रताप सिंह का एक वीडियो वायरल हो गया है। वीडियो में अधिकारी पत्रकारों से अभद्र व्यवहार करते और कथित रूप से मोबाइल छीनने की कोशिश करते दिखाई दे रहे हैं। यह मामला सोशल मीडिया पर तेजी से फैल रहा है और प्रशासनिक जवाबदेही को लेकर सवाल खड़े कर रहा है।
घटना का पृष्ठभूमि: मासूम की मौत से उपजा सवाल
मामला बहराइच के महसी क्षेत्र का है, जहाँ हाल ही में एक जंगली जानवर के हमले में दो साल के मासूम की मौत हो गई थी। इस दर्दनाक घटना के बाद स्थानीय मीडिया घटनास्थल पर पहुंची और वन विभाग की ओर से प्रतिक्रिया चाही। पत्रकारों ने DFO अजीत प्रताप से इस घटना पर बयान लेने की कोशिश की, लेकिन बात बिगड़ गई।
बाइट मांगते ही भड़के अधिकारी, मोबाइल छीने जाने का आरोप
पत्रकारों का आरोप है कि जैसे ही उन्होंने घटना पर प्रतिक्रिया की माँग की, DFO ने नाराजगी ज़ाहिर की और अपने साथ मौजूद सुरक्षाकर्मियों से पत्रकारों के मोबाइल फोन छीनने का प्रयास किया। इस दौरान कुछ पत्रकारों के साथ कथित तौर पर धक्का-मुक्की भी हुई।
वायरल वीडियो में DFO का आक्रोश और संवाद का तरीका साफ़ तौर पर देखा जा सकता है, जिससे यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या यह सरकारी अधिकारी की एक सामान्य प्रतिक्रिया थी या मीडिया से बचने की रणनीति?
पत्रकारों में रोष, प्रेस संगठनों ने जताया विरोध
घटना के बाद पत्रकारों में गहरा रोष है। कई स्थानीय पत्रकार संगठनों ने इस घटना की कड़ी निंदा करते हुए DFO के खिलाफ कार्रवाई की माँग की है। उनका कहना है कि यह सिर्फ मीडिया का नहीं, बल्कि जनता के सूचना के अधिकार पर हमला है।
“हम एक मासूम की मौत पर प्रशासन से जवाब मांगने गए थे, न कि किसी से लड़ाई करने। अगर अधिकारी इसी तरह जवाबदेही से बचेंगे तो लोकतंत्र कैसे बचेगा?” — एक स्थानीय पत्रकार
प्रशासन की चुप्पी और संभावित जांच
अब तक वन विभाग या जिला प्रशासन की ओर से इस घटना पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। हालांकि, वायरल वीडियो और मीडिया कवरेज को देखते हुए यह उम्मीद की जा रही है कि उच्चाधिकारियों द्वारा मामले की जांच के आदेश दिए जा सकते हैं।
बहराइच की यह घटना सिर्फ एक अधिकारी के व्यवहार तक सीमित नहीं है, बल्कि यह प्रेस की स्वतंत्रता, जनहित के सवालों और प्रशासनिक जवाबदेही से जुड़ा गंभीर मामला बन चुका है। अब यह देखना अहम होगा कि क्या इस मुद्दे पर शासन-प्रशासन कोई सख्त कदम उठाता है या फिर यह मामला भी बाकी विवादों की तरह फाइलों में दबकर रह जाएगा।