
सरकार को सवाल क्यों चुभ गए? वरिष्ठ पत्रकार अजित राठी के खिलाफ कार्रवाई ने उठाए गंभीर सवाल
उत्तराखंड में अभिव्यक्ति की आज़ादी पर एक और चोट देखने को मिली है। वरिष्ठ पत्रकार अजित राठी ने जब देहरादून के आईटी पार्क की कीमती सरकारी ज़मीन को 90 साल की लीज़ पर एक निजी बिल्डर को दिए जाने के सरकारी फैसले पर सवाल उठाया, तो सत्ता तिलमिला उठी।
उन्होंने केवल इतना पूछा था —
“जिस ज़मीन को आईटी इंडस्ट्री और प्रदेश के युवाओं के रोज़गार के लिए सुरक्षित रखा गया था, उसे निजी फ्लैट प्रोजेक्ट में क्यों बदल दिया जा रहा है?”
लेकिन सरकार ने इस सवाल को आलोचना नहीं, बल्कि “अपराध” समझ लिया।
सूत्रों के मुताबिक, राठी द्वारा किए गए सवाल और सोशल मीडिया पर साझा किए गए तथ्यों के बाद, सरकार की ओर से उन्हें कानूनी नोटिस भेजा गया और स्थानीय पुलिस ने उनके निवास स्थान पर जाकर पूछताछ की। बताया जा रहा है कि तीन दिनों तक पुलिसकर्मी उनके घर के बाहर आते-जाते रहे — जिससे परिवार में भय और तनाव का माहौल बन गया।
पत्रकार जगत में इस कार्रवाई की तीखी आलोचना हो रही है।
कई वरिष्ठ संपादकों और प्रेस संगठनों ने कहा कि
“अगर कोई पत्रकार जनता के संसाधनों के इस्तेमाल पर सवाल नहीं पूछेगा, तो फिर पत्रकारिता का अर्थ ही खत्म हो जाएगा।”
अजित राठी ने स्वयं कहा —
“मैंने कोई निजी एजेंडा नहीं चलाया। मैंने सिर्फ़ यह पूछा कि जनता की ज़मीन पर निजी बिल्डर को इतना बड़ा फ़ायदा देने का औचित्य क्या है। अगर ये सवाल सरकार को बुरा लगा, तो यह लोकतंत्र के लिए चिंता की बात है।”
दरअसल, देहरादून के आईटी पार्क की यह ज़मीन कभी राज्य के युवाओं को तकनीकी क्षेत्र में रोज़गार दिलाने के उद्देश्य से अधिग्रहीत की गई थी। लेकिन अब सरकार ने इसे एक प्राइवेट रियल एस्टेट प्रोजेक्ट को लीज़ पर देने का फैसला किया है। इस सौदे को लेकर कई सामाजिक संगठनों और स्थानीय नागरिकों ने भी सवाल उठाए हैं, मगर सबसे पहले इस मुद्दे को सार्वजनिक रूप से उठाने का साहस अजित राठी ने दिखाया।
पत्रकारों का कहना है कि सरकार की यह प्रतिक्रिया न केवल असहिष्णुता को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि सत्ता को पारदर्शिता से डर लगने लगा है।
प्रेस क्लब ऑफ उत्तराखंड ने अपने बयान में कहा —
“पत्रकार पर दबाव बनाना लोकतंत्र पर हमला है। सरकार को चाहिए कि वह सवालों के जवाब दे, सवाल पूछने वालों को न डरा-धमकाए।”
विपक्षी दलों ने भी इस मामले पर सरकार को घेरा है।
कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा:
“यह लोकतंत्र नहीं, डर का शासन है। जब कलम से डर लगने लगे, तो समझिए कि सरकार अपने ही फैसलों को लेकर अपराधबोध में है।”
इस पूरे प्रकरण ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है —
क्या उत्तराखंड जैसे शांत और शिक्षित राज्य में अब सत्ता से सवाल पूछना अपराध बन गया है?
अगर पत्रकारों को ही डराया जाएगा, तो जनता की आवाज़ कौन उठाएगा?
अजित राठी के समर्थन में सोशल मीडिया पर भी मुहिम शुरू हो चुकी है —
#StandWithAjitRathi और #SavePressFreedom ट्रेंड कर रहे हैं।
पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और आम नागरिकों का कहना है —
“लोकतंत्र में नोटिस नहीं, जवाब ज़रूरी है। और सच्चाई को किसी लीज़ पर नहीं दिया जा सकता।”
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