
“ज़हर लगे तलबे और पत्रकारिता का सच: खान सर का तीखा तंज”
पटना। मशहूर शिक्षाविद और यूथ आइकन खान सर ने एक कार्यक्रम के दौरान पत्रकारिता की गिरती साख और सत्ता से उनकी कथित नज़दीकियों पर करारा व्यंग्य किया। उनका बयान —
“ऐसे पत्रकार हैं, अगर उनकी जान लेनी हो तो नेताओं के तलबे पर ज़हर लगा दो। सुबह जब चाटने आएंगे तो मर जाएंगे सारे” —
सुनते ही मौजूद लोग सन्न रह गए, फिर ठहाकों से सभागार गूंज उठा।
यह बात उन्होंने हल्के-फुल्के अंदाज़ में कही, लेकिन इसका निहितार्थ गहरा और चिंताजनक था। खान सर ने बिना किसी का नाम लिए यह दिखा दिया कि पत्रकारिता का एक तबका अब “सवाल पूछने वाला” नहीं, बल्कि “सलाम बजाने वाला” बन चुका है।
#तलबे_चाटने_वाले_पत्रकार
नेताओं के तलबे चाटने वाले पत्रकार पर खान का बयाँन देखे वीडियो pic.twitter.com/TYQghTkiGq— bhadas2media (@bhadas2media) July 2, 2025
बयान का सामाजिक और राजनीतिक सन्दर्भ
खान सर का यह तंज मौजूदा मीडिया परिदृश्य को आईना दिखाने वाला था, जहाँ बड़ी संख्या में पत्रकार सत्ता के दरवाज़े पर नतमस्तक नज़र आते हैं। खान सर का कहना है कि —
“पत्रकार वो होता है जो सत्ता से सवाल पूछे, लेकिन आज कुछ लोग सत्ता के तलवे चाट रहे हैं।”
उनके इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई। कुछ लोगों ने इसे पत्रकारिता के गिरते मानकों पर करारा प्रहार माना, तो कुछ ने इसे असंवेदनशील और आपत्तिजनक बताया।
“सबसे पहले कौन चाटेगा?” – जनता का सवाल
खान सर के इस बयान के बाद जब किसी ने चुटकी ली, “आपके हिसाब से सबसे पहले कौन चाटेगा?”, तो कई लोगों ने हँसते हुए अपने-अपने अंदाज़ में नाम लेना शुरू कर दिया। सोशल मीडिया पर इस सवाल ने एक बहस को जन्म दिया —
क्या आज पत्रकार सच में सत्ता का मुखपृष्ठ बन चुके हैं?
क्या सवाल पूछने की जगह उन्होंने जवाब दोहराना शुरू कर दिया है?
पत्रकारिता या प्रचार तंत्र?
बीते कुछ वर्षों में पत्रकारिता का एक वर्ग अपनी निष्पक्षता खो बैठा है। सत्ता के खिलाफ बोलने वालों को “देशद्रोही” कह देना, असहज सवालों से बचना, या नेताओं के क़दमों में बैठ जाना — ये सब नई पत्रकारिता की पहचान बनती जा रही है।
खान सर के इस बयान ने उस छुपी हुई हकीकत को शब्द दे दिए हैं, जिसे देश का आम नागरिक रोज़ अपने मोबाइल स्क्रीन पर महसूस करता है।
खान सर का बयान भले ही विवादित हो, लेकिन इसमें छुपी सच्चाई से कोई इनकार नहीं कर सकता। अगर पत्रकारिता को फिर से सम्मानित बनाना है, तो उसे सत्ता की चाटुकारिता से अलग होना होगा — वर्ना एक दिन यही सवाल गूंजेगा:
“ज़हर कहाँ लगाया जाए?