
नई दिल्ली। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर अपने विवादित बयानों को लेकर सुर्खियों में हैं। इस बार उन्होंने निशाना बनाया है CNN की सीनियर नेशनल सिक्योरिटी रिपोर्टर नताशा बर्ट्रेंड को। ट्रंप ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म Truth Social पर कई तीखे पोस्ट करते हुए बर्ट्रेंड को “झूठी”, “देशद्रोही” और “फेक न्यूज़ की पोस्टर गर्ल” कहा है। उन्होंने CNN से मांग की कि वह उन्हें तुरंत नौकरी से बर्खास्त करे।
— CNN Communications (@CNNPR) June 25, 2025
यह हमला उस रिपोर्ट के बाद शुरू हुआ, जिसमें बर्ट्रेंड और उनकी टीम ने अमेरिका की हालिया ईरान एयरस्ट्राइक को लेकर सरकारी दावों पर सवाल उठाए थे। बर्ट्रेंड की रिपोर्ट के अनुसार, शुरुआती खुफिया सूत्रों से संकेत मिला कि ईरान पर किए गए हमले उतने प्रभावशाली नहीं थे जितना सरकारी स्तर पर दावा किया गया था। इस रिपोर्ट के बाद ट्रंप का गुस्सा फूट पड़ा और उन्होंने बर्ट्रेंड पर निजी हमले शुरू कर दिए।
ट्रंप ने लिखा—
“मैंने नताशा बर्ट्रेंड को लगातार तीन दिन तक झूठ फैलाते देखा। CNN को उन्हें तुरंत निकाल देना चाहिए। यही लोग कभी महान रहे CNN को बर्बाद करने के लिए ज़िम्मेदार हैं। इन्होंने अमेरिकी सेना और हमारे पायलटों की छवि को धूमिल किया है।”
हालांकि, CNN ने ट्रंप के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है। चैनल की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि नेटवर्क अपने पत्रकारों के साथ मजबूती से खड़ा है और वह निष्पक्ष व तथ्य-आधारित पत्रकारिता के प्रति प्रतिबद्ध है।
नताशा बर्ट्रेंड वर्तमान में CNN की राष्ट्रीय सुरक्षा संवाददाता हैं और वॉशिंगटन डीसी में कार्यरत हैं। उन्होंने वासर कॉलेज से राजनीतिक विज्ञान और दर्शनशास्त्र में डबल डिग्री ली है। उनके पत्रकारिता करियर में The Atlantic, Politico और Business Insider जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में काम करने का अनुभव शामिल है।
उनकी कुछ चर्चित रिपोर्टिंग में शामिल हैं:
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गाज़ा में इजराइली सैन्य कार्रवाई की ग्राउंड रिपोर्टिंग
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अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन की गुप्त बीमारी का खुलासा
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रूस की खुफिया फाइलों की रहस्यमयी गुमशुदगी
इसके अलावा, रूस-यूक्रेन युद्ध पर उनकी टीम की रिपोर्टिंग को एमी अवॉर्ड भी मिल चुका है।
ट्रंप के तीखे हमलों और CNN की प्रतिक्रिया ने एक बार फिर अमेरिका में मीडिया की स्वतंत्रता और राजनीतिक दबाव के बीच चल रहे संघर्ष को उजागर कर दिया है। यह प्रकरण न सिर्फ पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर बहस को जन्म देता है, बल्कि दर्शाता है कि सत्ता में रह चुके नेता किस तरह मीडिया पर प्रभाव डालने की कोशिश कर सकते हैं।
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