
एक समय था जब समाचार एजेंसियां निष्पक्षता और विश्वसनीयता की रीढ़ होती थीं। लेकिन अब, भारत की दो सबसे प्रमुख न्यूज़ एजेंसियां — PTI और ANI, खुद विवाद की खबर बन चुकी हैं।
इनकी रिपोर्टिंग अब पत्रकारिता नहीं, बल्कि “पॉलिटिकल टेलीकास्टिंग इंडिया” और “एजेंडा न्यूज इंटरनेशनल” जैसी प्रतीत होती है।
PTI: प्रेस ट्रस्ट या पॉलिटिकल ट्रस्ट ऑफ इंडिया?
PTI कभी भारत की सबसे भरोसेमंद समाचार एजेंसी मानी जाती थी। सरकारी एजेंसियों, अखबारों, चैनलों और यहां तक कि विदेशी मीडिया को भी इसके समाचारों पर भरोसा होता था।
लेकिन 2020 के बाद, हालात बदलने लगे।
विवाद 1: पीएम मोदी का इंटरव्यू विवाद (2020)
PTI ने प्रधानमंत्री मोदी का एक इंटरव्यू छापा जिसमें कुछ नीतिगत सवालों के आलोचनात्मक उत्तर थे। नतीजा?
• सरकारी विज्ञापन रोके गए
• सरकार समर्थकों ने “देशद्रोही” करार दिया
• चैनलों ने रिपोर्ट को “manipulated” बताया
कुछ दिनों बाद PTI ने सफाई दी: “हमने सिर्फ काम किया, एजेंडा नहीं।”
लेकिन… तब तक संदेह की स्याही लग चुकी थी।
ANI: कैमरे से ज्यादा करीबी सत्ता से?
ANI अब इंडिया की सबसे बड़ी वीडियो न्यूज़ एजेंसी है। जितने चैनल आपको दिखते हैं, उन सबकी वीडियो फीड ANI से आती है। लेकिन, कैमरे के पीछे से सरकार की छवि संवारने का आरोप भी ANI पर बराबरी से लगते हैं।
विवाद 2: ‘साक्षात्कार’ या ‘प्रसारण’?
• ANI पर अक्सर विपक्ष के नेताओं को जगह नहीं मिलती
• सरकार के इंटरव्यू — बिना सवालों के, बिना टकराव के — सीधे प्रसारित होते हैं
• 2024 चुनावों में विपक्ष ने आरोप लगाया कि ANI, BJP की “PR एजेंसी” बन गई है
विवाद 3: एडिटेड क्लिप और छवि निर्माण
कुछ वीडियो ANI से आए, जो बाद में एडिटेड पाए गए — जैसे कि विरोध प्रदर्शन में सिर्फ नारे दिखाना, पुलिस की कार्रवाई नहीं।
बड़ा सवाल: क्या ये एजेंसियां स्वतंत्र हैं?
PTI को सरकारी फंडिंग मिलती है, लेकिन वह खुद को “स्वतंत्र” बताती है। ANI एक प्राइवेट एजेंसी है, लेकिन सरकारी मंत्रालयों और नेताओं तक उसकी सीधी पहुंच है — जो बाकी मीडिया को नहीं मिलती।
अब सवाल यह है कि —
जब खबर भेजने वाली एजेंसी ही सत्ता की भाषा बोलने लगे, तो मीडिया की स्वतंत्रता का क्या बचता है?
मीडिया या मेकअप आर्टिस्ट?
इन एजेंसियों की रिपोर्टिंग देखकर लगता है जैसे अब पत्रकारिता का काम खबर देना नहीं, बल्कि शासकों की छवि चमकाना रह गया है।
• PTI अब एक ‘संशोधित सत्य’ देने में माहिर हो गई है
• ANI सरकार की “वॉयसओवर मशीन” की तरह काम कर रही है
• और आम दर्शक…?
वो सोच में है कि क्या वह “LIVE” देख रहा है या “LIKED” कंटेंट?
निष्कर्ष:
PTI और ANI की कहानी कोई साधारण मीडिया विवाद नहीं, यह भारत की पत्रकारिता के पतन का आईना है।
इनकी रिपोर्टिंग अब ‘रिपोर्टिंग’ नहीं, बल्कि ‘रीपोस्टिंग ऑफ पावर’ बन चुकी है।
और जब खबर की शुरुआत ही सत्ता के दरबार से हो, तो निष्पक्षता की उम्मीद करना जैसे आग से पानी मांगना है।
आखिरी पंक्तियाँ:
“अब पत्रकार सवाल नहीं पूछते,
वो सिर्फ वही दोहराते हैं जो उन्हें फीड में मिला होता है।
और जब फीड ही पक्षपातपूर्ण हो जाए,
तो लोकतंत्र को भूख लगती है — सच की भूख।”